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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatith.org Acharya Shri Kailassa (५३६) अष्टाङ्गहृदयेरुजो भूपः पश्चागुरुकुंकुमः ॥ कुचोरुश्रोणिशालिन्यो यौवनोष्णाङ्गयष्टयः॥१८॥ हर्षेणालिङ्गनैर्युक्ताः प्रियाःसंवहनेषु च॥ सात दिन अथवा ८ रात्रितक पानात्ययकी औषधी करनी क्योंकि इसी काल करके दूसरे मार्ग में स्थित हुआ पान परिणामको प्राप्त होताहै ॥ १० ॥ इसकालके अनन्तर जो रोग अनुबन्धको करै तिस रोगके यथायोग्य पानात्ययके औषधको प्रयुक्त करै ॥ ११ ॥ तिन सबप्रकारके मदात्यय रोगोंके मध्यमें वातकी अधिकतावाले मदात्ययमें पिष्टसे करेहुए मद्यको देवे और विजोरा अम्लवेतस बेर अनार अजमोद ॥ १२ ॥ अजवायन हाऊबेर जीरा सूट मिरच पीपल सेंधानमक कालानमक सांभरनमक अदरक करके और शल्यरूप मांसोंकरके और हरडोंकरके और स्नेहवाले सत्तुओंकरके ॥ १३॥ गरम स्निग्ध सलोने अम्ल मद्य और मांसके रस हितहैं और आंब तथा अंबाडेकी पेसियों करके संस्कृत किये राग और खांडव हितहैं ॥ १४ ॥ कोमल और अनेक प्रकारकी और मुखमें रुचीको करनेवाली गेहूं और उडदकी विकृति हितहै और आर्द्रिका अदरक कुल्माष कांजी मांस आदि गर्भावाली ॥ १५ ॥ सुगांधत और सलोनी शीतल और पुरानी स्वच्छ वारुणी हितहै और अनारका रस और लघुपंचमूलका काथ हितहै ।। १६ ।। सूंठ धनियां दहीका पानी सत्तुका पानी कांजी अभ्यंग उद्वर्तन स्नान उष्ण और घन आच्छादन ये सब हितहैं ॥ १७ ॥ और घन अर्थात् बहुतसा अगरका धूप हितहै अगर और केशरके पंकका अनुपान हितहै और कुचा जंघा कटी करके सुंदर और यौवनकरके गरम अंगयष्टी अर्थात् पतले शरीरवाली ॥ १८ ॥ और आनंदकरके आलिंगनोंकरके युक्त और मर्द करनेमें युक्त स्त्रिये हितहैं । पित्तोल्बणे बहुजलं शार्करं मधुना युतम् ॥ १९ ॥ रसैर्दाडिम खजूरभव्यद्राक्षापरूषकैः॥ सुशीतं ससितासक्तु योज्यं ताह क्च पानकम्॥२०॥स्वादुवर्गकषायैर्वा युक्तं मयं समाक्षिकम्॥ शालिषष्टिकमनीयाच्छशाजैणकपिञ्जलैः ॥२१॥ सतीनमुद्गा मलकपटोलीदाडिमैरपि ॥ और पित्तकी अधिकतावाले मदात्ययमें बहुतसे जलवाला शार्करनामवाला मद्यविशेष युक्त करना योग्यहै, अथवा मधुमाक्षिकमद्य ॥ १९ ॥ अनार खजूर बादाम दाख फालसा इन्होंके रसोंकरके संयुक्त और शीतल पान हितहै और मिसरी तथा धानकीखीलोंके सत्तुओंकरके युक्त और शीतल पान हितहै ॥ २० ॥ अथवा स्वादुवर्गके काथकरके संयुक्त किया और शहदसे संयुक्त मद्य युक्त करना हितहै और शालि चावलको तथा शॉठिचावलको खावै, परन्तु शशा बकरा मृग कपिजलपक्षीके मांसोंके रसके साथ ॥ २१ ॥ अथवा मटर मूंग आमला परवल अनारके रसके साथ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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