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(५२२)
अष्टाङ्गहृदयेस्नेहक्षीराम्बुकाष्ठेषु स्वभ्यक्तमवगाहयेत्॥उत्तीर्णमिश्रकैःस्नेहैभूयोऽभ्यक्तं सुखैः करैः॥७७॥ मृन्दीयात्सुखमासीनं सुखं चोद्वर्त्तयेत्परम् ॥ जीवन्तीं शतवीर्यां च विकसां सपुनर्नवाम् ॥ ॥७८॥अश्वगन्धामपामार्ग तर्कारी मधुकं बलाम् ॥ विदारी सर्षपान्कुष्ठं तण्डुलानतसीफलम्॥७९॥माषांस्तिलांश्च किण्वं च सर्वमेकत्र चूर्णयेत्ायवचूर्णं त्रिगुणितं दध्नायुक्तं समाक्षि. कम् ॥ ८०॥ एतदुद्वर्त्तनं कार्यं पुष्टिवर्णबलप्रदम् ॥ अच्छीतरह अभ्यक्त किये इस रोगीको स्नेह दूध पानीके कोष्ठोंमें निमग्न करके स्नानकरावे ( उनमेंबिठावे ) पीछ कोष्ठसे निकास गुल्मप्रकरणमें कहेहुये मिश्रकसंज्ञक और सुखको देनेवाल और दुष्करपनेसे रहित स्नेहोंकरके अभ्यक्त किये॥७७॥और सुखकरके बैठे हुए रोगीको मदित करे और सुखपूर्वक उद्वर्तित करै, और जीवंती मजीठ महाशतावरी शांठी ॥ ७८ ॥ असगंध ऊंगा अरनी मुलहटी खरैटी विदारीकन्द शरसों कूट चावल अलसीके बीज ।। ७९ ॥ उडद तिल मदिरासे बचाहुआ द्रव्य इन सबोंकोएकत्र चूर्णित करै पीछे तिगुणा जत्रोंका चूर्ण मिला
और दही तथा शदहसे संयुक्त करे ॥ ८० ।। यह उद्वर्त्तन करना योग्य है यह पुष्टि वर्ण बल इन्होंको देताहै ॥
गौरसर्षपकल्केन स्नानीयौषधिभिश्च सः॥८१॥ स्नानादृतुसुखैस्तोयैर्जीवनीयोपसाधितैः॥ गन्धमाल्यादिकं भूषामलक्ष्मीनाशनी भजेत् ॥ ८२॥सुहृदां दर्शनं गीतवादित्रोत्सवसंश्रुतिः ॥ वस्तयःक्षीरसपीषि मद्यमांससुशीलता ॥८॥ दैवव्यपाश्रयंतत्तदथर्वोक्त च पूजितम्॥८४ ॥
और सफेद शरसोंके कल्क करके और स्नानके योग्य गंधद्रव्यविशेष औषधोंकरके ॥ ८१ ॥ और हेमंतआदि ऋतुओंमें उष्णरूप तथा जीवनीयगणके औषधोंकरके साधित पानियों करके वह रोगी स्नान करे पीछे चंदन केशरआदि गंध और फूलोंकी माला और दरिद्रको नाशनेवाला गहना पहरावे ॥ ८२॥ मित्रोंका दर्शन दान बाजा विवाह आदि उत्सवका श्रवण और बस्तिकर्म और दूधसे निकसे घृत और मदिरा और मांसके सेवनमें अत्यंत अभ्यास करै ।। ८३ ॥ पीछे बलिदान मंगल होम प्रायश्चित्त आदिको और अथर्वणवेदमें कहे हुए यज्ञआदिकर्मभी यहां श्रेष्टहैं ॥ ८४ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपण्डितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां
चिकित्सितस्थाने पंचमोऽध्यायः ॥ ५॥
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