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(५०८)
अष्टाङ्गहृदयेकटेहली धमासा काकडासिंगी वेलगिरीका गूदा गोखरू इन्होंकरके बनाई अथवा चीता जीरा काकडासिंगी कालानमक इन्होंकरके करी ॥ २२ ॥ अथवा दशमूलकरके करी पेया खांसी श्वास शूल हिचकीको हरतीहै ॥ दशमूलशठीरानाभाह्रींविल्वर्द्धिपुष्करैः ॥ २३ ॥ कुलीरशृंगी . चपलातामलक्यमृतौषधैः ॥ पिवेत्कषायं जीर्णेऽस्मिन्पेयां तैरेव साधिताम् ॥ २४॥
और दशमूल कचूर राना भारंगी वेलगिरी ऋद्धि पोहकरमूल ।। २३ ॥ इन्हों करके और काकडासिंगी पीपल मुशली गिलोय इन औषधोंकरके सिद्धहुये क्वाथको पीव और हाथको जीर्णहोनेपै इन दशमूलआदि सब औषधोंकरके साधितकी पेयाको श्वास और हिचकीरोगवाला पीवै॥२४॥
शालीषष्टिकगोधूमयवमुद्कुलत्थभुक् ॥कासग्रहपाश्र्वार्ति हिमाश्वासप्रशान्तये ॥२५॥ सक्तून्वाकाङ्कुरक्षीरभावितानां समाक्षिकान् ॥ यवानां दशमूलादिनिक्काथलुलितान्पिबेत् ॥२६॥ अन्ने च योजयेत्क्षारं हिङ्ग्वाज्यविडदाडिमान् ॥ सपौष्करशठीव्योषमातुलिंगाम्लवेतसान् ॥२७॥ शाली चावलं शांठीचावल गेहूं जब मूंग कुलथीको खानेवाला मनुष्य ग्खांसी हृद्ग्रह पशलीशूल हिचकी श्वासकी शांतिको प्राप्तहोताहै ॥ २५ ॥ अथवा आकके अंकुर और दूध करके भावित किये यवोंके बनेहुये और दशमूलआदि काथमें आलोडितकिये और शहदसे संयुक्त सत्तुओंको पूर्वोक्त रोगोंकी शांतिके अर्थ पावै ॥ २६ ॥ जवाखार हींग घृत मनियारीनमक अनारकी छाल पोहकरमूल सूंठ मिरच पीपल विजोरा अम्लवेत इन्होंको अन्नमें योजितकरे ॥ २७ ॥
दशमलस्य वा क्वाथमथवा देवदारुणः ॥ पिवेद्वावारुणीमण्डं हिमाश्वासी पिपासितः ॥ २८॥ और अत्यंत तृषाको प्राप्त होनेवाला हिचकी और श्वासवाला रोगी दशमूलके क्वाथको अथवा देवदारके क्वाथको अथवा वारुणीमदिराके मंडको पीवै ॥ २८ ॥ पिप्पलीपिप्पलीमूलपथ्याजन्तुघ्नचित्रकैः ॥ कल्कितैलेपिते रूढे निक्षिपेद्धृतभाजने ॥ २९ ॥ तक्रं मासास्थितं तद्धि दीपनं ३वासकासजित्॥ पीपल पीपलामूल हरडे चीता वायविडंगके कल्कोंकरके लेपित और शुष्क हुए घृतके पात्रमें ॥ २९ ॥ तक्रको डाले पीछे एक महीनातक वह तक तहांही स्थितरहै यह दीपन है, श्वास और खांसीको जीतताहै ॥
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