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(५०२)
अष्टाङ्गहृदये
पीछे जांगलदेशके मांसोंकरके भोजन करनेवाले तिस मनुष्यको वटकआदि और बिलमें वास्तव्य करनेवाले जीव ।। १५६ ॥ और मांस खानेवाले प्रसह अर्थात् गैंडा व्याघ्र आदि जीवोंका मांस क्रमस खानेके अर्थ प्रयुक्तकरना योग्यहै और उष्णपनेसे तथा प्रमाथीभावपनेसे वे मांस स्त्रोतोंसे कफको गिरातेहैं ।।१५७।। शुद्धहुये तिनस्रोतों करके अच्छीतरह बहताहुवा रस पुष्टीको करताहै ।।
चविकात्रिफलाभादशमूलै सचित्रकैः ॥१५८॥ कुलत्थपिप्पलीमूलपाठाकोलयवर्जले॥ शृतैर्नागरदुःस्पर्शापिप्पलीशठिपौष्करैः ॥ १५९ ॥ पिष्टैःकर्कटशृङ्गया च समैः सर्पिर्विपाचयेत्॥ सिद्धेऽस्मिंश्चूर्णितौ क्षारौ द्वौ पञ्चलवणानि च ॥ १६० ॥ दत्त्वायुक्त्यापिवेन्मात्रां क्षयकासनिपीडितः॥ चव्य त्रिफला भारंगी दशमूल चीता ॥ १५८ ॥ कुलथी पीपलामूल वेर पाठा जब इन्होंकरके और जलमें पकायेहुये सूंठ धमासा. पीपल कचूर पोहकरमूल इन पीसे हुये द्रव्योंकरके ॥ १५९॥ और काकडासिंगीकरके घृतको पकावे और सिद्धहुये घुतमें चूर्णितकिये शाजीखार जवाखार कालानमक सेंधानमक साँभरनमक खारानमक मनियारी नमक ॥ १६० ॥ इन्होंको मिलाके पीछे क्षयकी खांसीकरके पीडितहुआ मनुष्य युक्ति करके पावै ॥
कासमर्दाभयामुस्तापाठाकट्फलनागरैः ॥ १६१॥ पिप्पल्या कटुरोहिण्या काश्म- स्वरसेन च ॥ अक्षमात्रैघृतप्रस्थं क्षीर द्राक्षारसाढके॥१६२॥ पचेच्छोषज्वरप्लीहसर्वकासहरंशिवम्॥
कसोंदी हरडै नागरमोथा पाठा कायफल सूंठ करके ॥ १६१ ॥ और पीपल कटुकी कंभारीके एक एक तोले प्रमाणित रसोंकरके २५६ तोले दूध २५६ तोले दाखोंके रसमें ६४ तोले घृतको ॥ १६२ ॥ पकावै, यह घृत शोष ज्वर सबप्रकारकी खांसीको हरताहै और आरोग्यको करताहै ।। विषव्याघ्रीगुडूचीना पत्रमूलफलाकुरान् ॥१६३॥ रसकल्कैघृतं पक्कं हन्ति कासज्वरारुचीः॥द्विगुणे दाडिमरसे सिद्धं वा व्योष संयुतम् ॥१६४ ॥ पिबेदुपरि भुक्तस्य यवक्षारघृतं नरः॥ पिप्प. लीगुडसिद्धं वा छागक्षीरयुतं घृतम् ॥१६५॥ एतान्यग्निविवृव्यर्थं सीषिक्षयकासिनाम् ॥स्युर्दोषबद्धकण्ठोरःस्रोतसाच विशुद्धये ॥ १६६ ॥ भौर वांसा कटेहली गिलोय के पत्ते जड फल अंकुरको ॥ १६३ ॥ लेकर इन्होंहीके रस और कल्कोंके संग पक्ककिया घृत खांसी ज्वर अरुचीको नाशता है और दुगुने अनारके रसमें सिद्धकिया और सूंठ मिरच पीपलसे संयुक्त ॥ १६४ ॥ और जवाखारसे संयुक्त किये घृतको
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