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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४८९) और मिरचको शहदके संग चाटै और अगरको शहदके संग चाटै ॥ ४७ ॥ और कटेहली वार्ताकु भांगरा इन्होंके पृथक् पृथक् रसोंको शहदके संग चाटै और घोडेकी लदिके रसको चाटै ४८
देवदारुशठीरानाकर्कटाख्यादुरालभाः ॥ पिप्पली नागरं मुस्तं पथ्या धात्री सितोपला ॥४९॥लाजा सितोपला सर्पिः शृङ्गी धात्रीफलोद्भवा ॥ मधुतैलयुता लेहास्त्रयो वातानुगे कफे ॥५०॥
देवदार कचूर रायसग काकडासिंगी धमासा ये और पीपल, झूठ, नागरमोथा, हरडे, आंवला मिसरी ॥ ४९ ॥ धानकी खील मिसरी व्रत काकडासिंगी आँवला ये तीनों शहद और तेलसे संयुक्त किये लेह वात अनुगत कफमें हितहें ॥ ५० ॥
द्वे पले दाडिमादष्टौ गुडाद्वयोषात्पलत्रयम् ॥
रोचनं दीपनं स्वयं पीनसश्वासकासजित् ॥ ५१ ॥ अनारका छिलका ८ तोले गुड ३२ तोले झूठ मिरच पीपल १२ तोले इन्होंका चूरण रोचन है दीपनहै स्वरमें हितहै और पीनस श्वास खांसीको जीतता है ।। ५१॥
गुडक्षारोषणकणादाडिमं श्वासकासजित् ॥
क्रमात्पलद्वया क्षकांक्षार्धपलोन्मितम् ॥५२॥ गुड ८ तोले जवाखार ६ मासे मिरच १ तोला पीपल आधा तोला अनारकी छाल ४ तोले इन्होंका चूरण श्वास और खांसीको जीतता है ॥ १२ ॥
पिबेज्ज्वरोक्तं पथ्यादि सशङ्गीकञ्च पाचनम् ॥ ज्वरचिकित्सितमें कहे हुये काकडासिंगीसे संयुक्त पथ्यादि पाचनभी श्वास और खांसीको 'जीतता है॥
अथवा दीप्यकत्रिवृद्विशालाघनपौष्करम्॥५३॥ सकणं कथितं मूत्रे कफकासी जलेऽपि वा॥ तैलमृष्टं च वैदेही कल्काक्षं ससितोपलम् ॥५४॥ पाययेत्कफकासन्नं कुलत्थसलिलाप्लुतम् ॥ दशमूलाढके प्रस्थं घृतस्याक्षसमैः पचेत् ॥५५॥पुष्कराह्वशटी बिल्वसुरसाव्योषहिङ्गुभिः॥ पेयानुपानं तत्सर्पिर्वातश्लेष्मामया पहम् ॥ ५६॥ अथवा अजमोद निशोथ इन्द्रायण नागरमोथा पोहकरमूल ॥ ५३॥ पीपल इन्होंको पानीमें अथवा गोमूत्रमें कथित बना कफकी खांसीवाला पीव और तेलमें भुनाहुवा और मिसरीसे संयुक्त
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