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(४८८)
अष्टाङ्गहृदयेअथवा खांड जीवक मूंगपर्णी माषपर्णी धमासा ॥ ३८ ॥ इन्होंका कल्क बना और आठगुणे दूधमें घृतको पकावै पीछे पीना, भोजन, चाटना, इन्होंमें प्रयुक्त किया यह घृत पित्तकी खांसीको जीतताहै ॥ ३९ ॥ अथवा इन्हीं औषधोंके चूर्णको अथवा क्वाथको पीवै ॥
कफकासी पिबेदादौ सुरकाष्ठात्प्रदीपितात् ॥ ४० ॥ स्नेहं परिनुतं व्योषयवक्षारावचूर्णितम् ॥ स्निग्धं विरेचयेदूर्ध्वमधो . मूर्ध्नि च युक्तितः॥४१॥ तीष्णैविरकैर्बलिनं संसर्गी चास्य योजयेत् ॥ यवमुद्गकुलत्थानैरुष्णरूक्षैः कटूत्कटैः ॥४२॥ कासमर्दकवार्ताकव्याघ्रीक्षारकणान्वितैः ॥ धान्वबैलरसैः स्नेहैस्तिलसर्षपनिम्बजैः ॥ ४३ ॥
और कफकी खांसीवाला आदिमें प्रज्वलितकिये देवदारुकाष्ठसे ॥ ४० ॥ किया हुआ स्नेह सूंठ मिरच पीपल जवाखारसे संयुक्त पी और पीछे स्निग्ध हुये तिस मनुष्यको ऊपर नीचे मस्तकमें युक्तीसे बलकी हानि नहीं होसके ॥ ४१ ॥ तैसे बलवाले रोगीको तीक्ष्ण विरेचनोंसे जुलाब दिवावे, और इसी रोगीके अर्थ जब मूंग कुलथी करके गरम और रूखे अत्यन्त कडवे ॥ ४२ ॥ कसोंदी बैंगन कटेहलीका खार,पीपल, और जांगलदेशमें रहनेवाले तथा बिलमें रहनेवाले जीवोंका मांस और तिल शरसों नींबसे उत्पन्नहुए तेल करके संयुक्त करी पेयाआदिको प्रयुक्त करै ॥ ४३ ॥
. दशमूलाम्बु घर्माम्बु मद्यं मध्वम्बु वा पिबेत्॥
मूलैः पौष्करशम्याकपटोलैः संस्थितं निशाम् ॥४४॥
पिबेद्वारि सहक्षौद्रं कालेष्वन्नस्य वा त्रिषु ॥ दशमूलका पानी घामका पानी मदिराशहदयुक्त पानीको पीवै और पोहकरमूल अमलतास परवलके जडोंकरके सिद्ध किया और रात्रिमात्रमें अच्छी तरहसे स्थित किया ॥ ४४ ॥ और शहदसे संयुक्त पानीको भोजनके आदि मध्य अंतमें पीवै ॥
पिप्पली पिप्पलीमूलं शृङ्गवेरंविभीतकम् ॥४५॥ शिखिकुक्कुट पिच्छानां मषीक्षारो यवोद्भवः॥विशाला पिप्पलीमूलं त्रिवृता च मधुद्रवाः॥४६॥कफकासहरा लेहास्त्रयःश्लोकार्द्धयोजिताः॥
और पीपल पीपलामूल अदरक बहेडा इन्होंको अथवा ॥ ४५ ॥ मोर और मुर्गाके पंखोंकी स्याही जवाखारको अथवा इन्द्रायण पीपलामूल निशोथ ॥ ४६ ॥ तीनों लेह शहदसे संयुक्तकिये कफकी खांसीको हरते हैं ।।
मधुना मरिचं लिह्यान्मधुनैव च जोङ्गकम् ॥४७॥ पृथग्रसांश्च मधुना व्याघ्रीवार्ताकभृङ्गजान् ॥ कासनस्याश्वशकृतः सुरसस्यासितस्य च ॥४८॥
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