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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
(४७७) और संतर्पणसे उपजे हुए बलवाले तथा बहुतसे दोषोंवाले मनुष्यको प्राप्त हुआ ॥ ३॥ और ऊपरके स्थानों में गमनकरनेवाले रक्तपित्तको जुलाब करके साधै, नीचेके शरीरमें गमनकरनेवाले, रक्तपित्तको वमन करके साधै और दुर्बल तथा अल्पदोषवाले मनुष्यके ऊपरके शरीरमें प्राप्तहुआ रक्तपित्तको शमन रूप औषधोंकरके साधित करे, और दुर्बल तथा अल्पदोषवाले मनुष्यके नीचे शरीरमें उपजेहुये रक्तपित्तको बृंहण औषधों करके साधै और लंघनसे उपजेहुये अधोगत रक्तपित्तको शमनरूप औपधों करके साथै, और बृंहणसे उपजे ऊर्ध्वगत रक्तपित्तको लंघनों करके साधे ॥ ४ ॥ ऊपरको प्रवृत्तहुये रक्तपित्तमें शुठीसे वर्जित पडंगपानीको पीनेवाले मनुष्यके तिक्त और कसैले रस और उपवास ये शमनरूप कहे हैं ॥ ५ ॥ अधोगत रक्तपित्तमें बृंहण और मधुररस हित है, ऊर्ध्वगतरक्तपित्तों पहिले तर्पणरूप पदार्थको युक्त करना हितहै और अधोगतरक्तपित्तो पहिले पेयाको युक्त करना उचितहै ॥ ६ ॥
अनतो बलिनोऽशुद्धं न धाय॑ तद्धि रोगकृत् ॥
धाररोदन्यथा शीघ्रमग्निवच्छीघ्रकारि तत् ॥ ७॥ भोजनकरनेवाले और वलवालेके दुष्टरक्त थांभना अच्छा नहीं है, क्योंकि वह स्तंभित किया रक्त विसर्प विद्रधि महा आदिरोगोंको करता है और दुर्बल भोजनको नहीं करनेवालेके दुष्टरक्त म्तमितकरना याबह और जो नहीं स्तंभित किया जावे तो तत्काल रोगीको मारदेताहै ॥ ७ ॥
त्रिवृच्छयामाकषायेण काल्केन च सशर्करम्॥साधयेद्विधिवल्लेहं लिल्ह्यात्याणितलं ततः॥८॥ त्रिवृता त्रिफला श्यामा पिप्पली शर्करामधुमोदकः सन्निपातो रक्तशोफज्वरापहः॥९॥त्रि. वृत्तमसिला तद्वत्पिप्पली पादसंयुता ॥ निशोथ और विकानिशोथके कपायकरके तथा कल्क करके खांडसे सहित लेहको विधिसे साधित कर पीछे एकतोलेभर अवलेहको चाटै ॥ ८ ॥ निशोथ त्रिफला मालविकानिशोथ पीपल खांड शहदकी गोली सन्निपातसे उपजे ऊर्ध्वरक्तपित्त शोजा ज्वरको हरतीहै ॥ ९॥ निशोथ और मिसरी बरावर लेवे जिसमें चौथाई भाग पीपल मिलावै यह लेह सन्निपात ऊर्च रक्तपित्त शोजा ज्वरको नाशता है।
वमनं फलसंयुक्तं तर्पणं ससितामधु ॥ १०॥ ससितं वा जलं क्षौद्युकं वा मधुकोदकम् ॥क्षीरं वा रसमिक्षोर्वा शुद्धस्यानन्तरो विधिः॥११॥ यथास्वं मन्थपेयादिः प्रयोज्यो रक्षतावलम् ॥ मैनफलकरके संयुक्त और मिसरी तथा शहदकरके संयुक्त तर्पण वमनमें देना योग्यहै ॥ १०॥ अथवा मिसरी पानी शहद मैनफलको मिलाकर वमनमें देने योग्यहे अथवा महुआके पानीमें मैंनफलको मिला देना अथवा दूधकरके संयुक्त मैंनफलको देना,अथवा ईखके रसके संग मैनफलको देना, ऐसे विरेक वमन आदिकरके शुद्ध किये मनुष्यके पश्चात् यह वक्ष्यमाणविधि करना योग्यहै ॥११॥
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