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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । ष्ठीवनक्षवथूगारनिःश्वासोच्छ्वाससंग्रहः ॥४६॥ उदाने गुरुगात्रत्वमरुचिर्वाक्स्वरग्रहः ॥ बलवर्णप्रणाशश्च व्याने पर्वास्थिवा ग्ग्रहः ॥४७॥ गुरुताऽङ्गेषु सर्वेषु स्खलितं च गतौ भृशम् ॥ समानेऽति हिमाङ्गत्वमस्वेदो मन्दवह्निता ॥४८॥ अपाने सकर्फ मूत्रशकृतः स्यात्प्रवर्तनम्॥ इति द्वाविंशतिविधं वायो रावरणं विदुः॥४९॥ - और पित्त करके आवृतहुये प्राण वायु चम, मूर्छा, शूल, दाह होतेहैं ॥ ४२ ॥ अन्नको विदग्ध होनेमें वमन होताहै और पित्तकरके आवृतहुये उदानवायुमें भ्रम मूछ शूल दाह और विदाह अवशको प्राप्तहुये अन्नमें वमन और शरीरके भीतर दाह बलका नाश ये उपजते हैं और पित्त करके आवृतहुये व्यानवायुमें शरीरके भीतर और बाहिर दाह |॥ १३ ॥ ग्लानि अंगकी चेष्टाका बंधेज और पीडासहित संताप उपजते हैं और पित्त करके आवृत हुये समान वायुमें अग्निका उपघात अत्यंत पसीना ग्लानि, तृषा उपजतेहैं ॥ ४४ ॥ पित्तकरके आवृत हुये अपान वायुमें दाह विष्ठा आदि मलों में हलदीके समान वर्ण और योनि, लिंग, गुदामें पीडाकी अत्यंत वृद्धि ताप उपजते हैं ॥ ४५ ॥ कफ करके आवृतहुये प्राणवायुमें शरीरका शिथिलपना तंद्रा, अरुची, छर्दैि, थुकथुकी, छींक, डकार और बाहिरका तथा भीतरका श्वासका रुकजाना ये उपजते हैं ॥ ४६ ॥ कफकरके आवृत्त हुये उदान वायुमें अंगोंका भारीपन अरुची, वाणी और स्वरका बंधेज बल और वर्णका नाश उपजता है, और कफ करके आवृत हुये व्यान वायुमें संधि हड्डी वाणीका बंधेज ॥ ४७ ॥ और सब अंगोंमें भारीपन और गमनकरनेमें अत्यंत प्रकृतिविपर्यास और कफ करके आवृत हुये समान बायुमें अंगोंका अत्यंत शीतलपना पसीनेका अभाव और मंदाग्नि होती है ॥४८॥ कफ करके आवृत हुये अपान वायुमें मूत्रका और विष्ठाका प्रवर्तन,कफसे मिलाहुआ होताहै,ऐसे बाइस प्रकारवाला वायुका आवरण वैद्योंने कहाहै।४९॥ प्राणादयस्तथान्योन्यमावृण्वन्ति यथाक्रमम॥सर्वेऽपि विंशति विधं विद्यादावरणं च तत् ॥ ५० ॥ निश्वासोच्छवाससंरोधः प्रतिश्यायः शिरोग्रहः ॥ हृद्रोगो मुखशोषश्च प्राणेनोदान आवृते ॥५१॥ उदानेनावृते प्राणे वर्णीजोबलसंक्षयः॥ दिशा ऽनया च विभजेत्सर्वमावरणं भिषक् ॥५२॥ स्थानान्यवेक्ष्य वातानां वृद्धि हानि च कर्मणाम् ॥ और पांच प्राण आदिवायु यथाक्रमसे आवरण करते हैं तब वह आवरण २० प्रकारका जानना ॥ १० ॥ प्राणकरके आवृतहुये उदान वायुमें भीतर और बाहिरके श्वासका रुकना और पीनस, For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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