________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम्। (४४९) रूखा और भारी अन्न वेगका घात अतिवाहन सवारीपे, गमन, बैठना, स्थित होना भ्रमण, इन्होंके अत्यंतपने करके ।। २७ । कुपित हुआ अपान वायु कष्टरूप पक्काशयसे उपजे रोगोंकों और मूत्र वीर्यके दोष तथा बवासीर, गुदभ्रंश आदि बहुतसे रोगोंको करता है ॥ २८ ॥
सर्वं च मारुतं सामं तन्द्रास्तैमित्यगौरवैः ॥ स्निग्धत्वारोचकालस्यशैत्यशोफाग्निहानिभिः॥२९॥ कटुरूक्षाभिलाषेण तद्विधोपशयेन च ॥ युक्तं विद्यान्निरामं तु तन्द्रादीनां विपर्ययात् ॥३०॥ तंद्रा, स्तिमितपना, भारीपन इन्हों करके और चिकनापन, अरोचक, आलस्य, शीतलता, शोजा. अग्निकी हानी करके ॥ २९ ॥ कडुए रूखे अभिलाष करके तथा उपशय करके युक्तहुआ सब प्रकारका वायु सामरोगयुक्त जानना, और सामसे विपरीत लक्षणोंवाला वायु निराम जानना३० वायोरावरणं वातोबहुभेदं प्रवक्ष्यते॥लिङ्गं पित्तावृते दाहस्तृ
णा शूलं भ्रमस्तमः॥३१॥ कटुकोष्णाम्ललवणैर्विदाहः शीत कामता ॥ शैत्यगौरवशूलानि कहाद्युपशयोऽधिकम् ॥ ३२ ॥ लङ्घनायासरूक्षोष्णकामता च कफावृते॥ रक्तावृते सदाहातिस्त्वङ्मांसान्तरजा भृशम् ॥ ३३ ॥ भवेच्च रागीश्वपथुर्जायंते मण्डलानि च ॥ मांसेन कठिनः शोफो विवर्णःपिटिकास्तथा ॥३४॥ हर्षः पिपीलिकाना च सञ्चार इव जायते ॥ इसी कारण वायुके बहुतसे भेदोंवाले आवरणंको ग्रंथकार वर्णन करता है और पित्तकरके आवृतहुये वायुमें दाह, तृषा, शूल, भ्रम, अंधेरी ।। ३१ ॥ कडुआ, गरम, खट्टा, लवण, करके विशेष दाह, शीतलपदार्थकी इच्छा ये सब लक्षण हैं और शीतलता, भारीपन, शूल, कडुआदि उपशय ॥ ३२ ॥ लंघन, परिश्रम, रूखा, और गरम पदार्थकी इच्छा ये सब लक्षण कफसे आवृतबायुमें होते हैं, और रक्तकरके आवृतहुये वायुमें दाह, त्वचा, मांसके भीतर उपजनेवाली अत्यंत पीडा ॥ ३३ ॥ रागवाला शोजा मंडल ये उपजते हैं, और मांसकरके आवृतहुये वायुमें कठिन और वर्णसे रहित शोजा और फुनसियां ॥ ३४ ॥ पिपीलिका अर्थात् कीडियोंके संचारकी तरहशररिमें हर्ष उपजता है ॥
चलः स्निन्धो मृदुः शीतः शोफो गात्रेष्वरोचकः॥ ३५॥ आढ्य वात इति ज्ञेयः स कृच्छ्रो मेदसाऽऽवृते ॥ स्पर्शमस्थ्या वृतेऽत्युष्णं पीडनं चाभिनन्दति ॥ ३६ ॥ सृच्येव तुद्यतेऽत्यर्थ
For Private and Personal Use Only