________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
"ऋग्वेदादायुर्वेदः”
यह आयुर्वेद धन्वंतरिआदि महाप्रभाव पुरुषावतारीनके शिष्य प्रशिष्य परंपरा द्वारा आत्रेय 1.सुश्रुत वसिष्ठ नारद आदि ऋषिनके शिष्य परंपरद्वारा इस भूमण्डलनिवासिजनों के परमकल्याणार्थ निज निज संहितारूपसे विस्तीर्ण होकर के सब दूर प्रसिद्ध हुआ है कितनेकालके उपरांत सिद्ध अनुभवी वैद्यजन होगये उन्होंने भी अपने अपने अनुभव के अनुसार सिद्धयोगों का संग्रह करके और पूर्वाचार्यका मत देखिकै ग्रंथ बनाये हैं तिन वैद्यजनों के शिरोमणिभूत श्रीवाग्भट नामक वैद्यराजने सर्व लोकों के उपकारार्थ सर्व तंत्रों को अच्छीरीतिसे अपने बुद्धिद्वारा मंथन करके यह अष्टांगहृदय नामक ग्रंथ बनाया है जिसमें स्था आदि स्थान कहे हैं और काय आदि आठ अंग कहे हैं, यह ग्रंथ अभीतक संस्कृतभाष मेंही रहनेसे साधारण वैद्यजनों को इसका लाभ होना दुर्घट था उससे उन लोगोंकी इस अत्युपकारी ग्रंथकी प्रतीक्षा कितनेकदिन से लगरहीथी इसलिये हमने भी हमारे बहोत प्रेमी वैद्यजनों की सूचना से वेरीनिवासी सुप्रसिद्ध वैद्य रविदत्त पंडित से इस अष्टांगहृदय ग्रंथकी भाषाटीका बनवाई है सो यह ग्रंथ भाषाटीका बनानेके पश्चात् बहोत से विद्वान् वैद्योंको दिखवायके उन्होंने पसन्द किया है ताके अनंतर हमने स्वकीय' श्रीवेङ्कटेश्वर " मुद्रालयमें मुद्रित कारके यह ग्रंथ प्रसिद्ध किया था उसकी प्रथमावृत्ती वैद्यजनोंने संग्रह करलीनी, तौभी अनेक अनेक वैद्यमहाशयों की सूचना आनेपर इस ग्रंथको मुरादाबाद निवासी पंडित ज्वालाप्रसादजी मिश्र इनसे परिशोधित कराय द्वितीयावृत्ति छपवाय के प्रसिद्ध की सोभी वैद्योंकी गुणग्राहकता से स निकलगई अब तृतीयावृत्तिमें फरुखनगर निवासी प्रसिद्ध राजवैद्य आयुर्वेद्यमार्तंड पं० मुरलीधर शर्माजीसे फिर औरभी इसे भलीभांत संशोधन कराके पुनः प्रकाशित किया है..
इस ग्रंथको अपना अपना उदार आश्रय देके हमारे परिश्रमों को कृतार्थ करेंगे ऐसी हम अपने ग्राहकगणों को प्रार्थना करते हैं और इस ग्रंथ के मुद्रणमें जो कुछ अशुद्धता होगयी हो उसको "सर्वज्ञः परमेश्वरः” ऐसा जानिके क्षमा करेंगे.
खेमराज श्रीकृष्णदास.
"श्रीवेङ्कटेश्वर "स्टीम् - यन्त्रालयाध्यक्ष- मुंबई.
For Private and Personal Use Only