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निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४०३) लांतदेहवाले मनुष्यके बस्तिमें स्थित होनेवाले पित्त और वायु शूल और दाहसे संयुक्त मूत्रक्षयको करते हैं तिसको मूत्रक्षय कहते हैं ॥ ३७ ॥
पित्तं कफो द्वावपि वा संहन्येतेऽनिलेन च॥कृच्छ्रान्मृत्रं तदा पीतं रक्तं श्वेतं धनं सृजेत्॥३८॥ सदाहं रोचनाशवचूर्णवर्ण भवेच्च तत्॥शुष्कं समस्तवर्णं वा मूत्रसादं वदन्ति तम् ॥३९॥ पित्त अथवा कफ न्यारे न्यारे वायुकरके अत्यंत पीडित होते हैं, अथवा दोनोमिलेहुये पीडित होते हैं, तब पीला तथा रक्त सफेद और करडा मूत्र कष्टसे उतरता है ॥ ३८ ॥ और वही मूत्र दाहसे संयुक्त वंशलोचन और शंखके चूर्णके समान वर्णवाला सूवा अथवा सब प्रकारके वर्णवाला होजाता है तिसको मूत्रसाद कहते हैं ॥ ३९॥
इति विस्तरतः प्रोक्ता रोगा मूत्राऽप्रवृत्तिजाः॥
निदानलक्षणैरूई वक्ष्यन्तेऽतिप्रवृत्तिजाः ॥४०॥ ऐसे विस्तारकरके मूत्रकी अप्रवृत्तिसे उपजे रोग निदान और लक्षणोंकरके कहे और इसके उपरांत मूत्रकी अत्यंत प्रवृत्तिसे उपजे रोग प्रकाशित किये जावेंगे॥ ४० ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां
निदानस्थाने नवमोऽध्यायः॥९॥
दशमोऽध्यायः।
अथातः प्रमेहनिदानव्याख्यास्यामः। . इसके अनंतर प्रमेहनिदाननामक अध्यायका ब्याख्यान करेंगे । प्रमेहा विंशतिस्तत्र श्लेष्मतो दश पित्ततः॥ षट् चत्वारोऽनिलात्तेषां मेदोमूत्रकफावहम् ॥ १॥ अन्नपानक्रियाजातं यप्रायस्तत्प्रवर्तकम् ॥ स्वाद्वम्ललवणस्निग्धगुरुपिच्छिलशीतलम्॥२॥नवधान्यसुरानूपमांसेक्षुगुडगोरसम् ॥ एकस्थानासनरतिः शयनं विधिवर्जितम् ॥३॥ बस्तिमाश्रित्य कुरुते प्रमेहान्दूषितःकफः॥ दूषयित्वा वपुःक्लेदस्वेदमेदोरसामिषम् ॥४॥ पित्तं रक्तमपि क्षीणे कफादौ मूत्रसंश्रयम् ॥ धातून्बस्तिमुपानीय तत्क्षयेऽपि च मारुतः॥ ५॥
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