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(३९८)
अष्टाङ्गहृदयेविभागेंगस्य ये चोक्ता विषमद्यास्त्रयोऽग्नयः ॥२९॥ तेऽपि स्युर्घ- :. हणीदोषाः समस्तु स्वास्थ्यकारणम् ॥ वातव्याध्यश्मरीकुष्ठमे होदरभगन्दराः॥अॉसि ग्रहणीत्यष्टौ महारोगाः सुदुस्तराः॥३०॥
परंतु अंगके विभागमें जो विषम, तक्ष्णि, मंद ऐसे तीन अग्नि कहे हैं ।। २९ ॥वे भी ग्रहणी दोष हैं और समअग्नि आरोग्यताका कारण है वातव्याधि, पथरी, कुष्ठ, प्रमेह, उदर रोग, भगंदर अर्शरोग, ग्रहणीरोग ये आठौं अत्यंत दुस्तररूप महारोग कहे हैं ॥ ३० ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां
निदानस्थानेऽष्टमोऽध्यायः ॥८॥
नवमोऽध्यायः।
-rectorअथातो मूत्राघातनिदानं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर मूत्राघातनिंदाननामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे । बस्तिबस्तिशिरोमेढ़कटीवृषणपायवः॥
एकसम्बन्धनाःप्रोक्ता गुदास्थिविवराश्रयाः॥१॥ बस्तिस्थान, बस्तिका शिर, लिंग, कटि, अंडकोश, गुदा ये सब गुदाकी हड्डियोंके छिद्रोंमें आश्रित हुये एक ग्रंथनवाले कहे हैं ॥ १ ॥
अधोमुखोऽपि बस्तिहि मूत्रवाहिशिरामुखैः॥ पाश्र्वेभ्यः पूर्यते सूक्ष्मैः स्यन्दमानैरनारतम्॥२॥यस्तैरेवं प्रविश्यैनं दोषान्कुर्वति विंशतिम् ॥ मूत्राघातान्प्रमेहांश्च कृच्छ्रान्मर्मसमाश्रयान् ॥३॥ बस्तिबंक्षणमेदार्तियुक्तोऽल्पाल्पं मुहुर्मुहुः ॥ मूत्रयेद्वातजे कृच्छ्रे पैत्ते पीतं सदाहरुक् ॥४॥ रक्तं वा कफजे बस्तिमे
गौरवशोफवान्॥सपिच्छं सविबन्धञ्च सर्वैः सर्वात्मकं मलैः॥५॥ नाचेको मुखवाला बस्तिको पाश्वोंसे मूत्रको निरंतर झिराते हुये मूत्रको. बहाने वाली नाडियों के सूक्ष्मरूप मुखोंकरके पूरित करते हैं ॥ २ ॥ जिन स्त्रोतोंके द्वारोंकरके पूरित करते हैं तिन्होंकरके बस्तिमें प्रवेशकर वातआदि दोष मर्ममें आश्रित होनेवाले और कष्टसाध्य और बीस प्रकारवाले मूत्राघातोंको और प्रमेहोंको करते हैं। शाबस्तिस्थान, अंडसीध, लिंग, इन्होंकी पीडासे संयुक्तहुआ मनुष्य थोडा २ और बारंबार मृतै, ऐसे लक्षण वातसे उपजे मूत्राघातमें होते हैं, और पित्तसे उपजे मूत्रा
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