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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदानस्थानं भाषटीकासमेतम् । ( ३९५) और इसीतरहके अन्यकारणोंसे कुपितहुआ वात जलधातुको नीचेको प्राप्त करता है और तिसी जलधातुकरके जठराग्निको नष्ट कर ॥ ३ ॥ तथा कोष्ठके शून्यभावको प्राप्त कर विष्ठाको प्रभावको प्राप्त करताहुआ महावायु अतिसार रोगके अर्थ कल्पित करता है, तिस होनेवाले अतिसार रोगके पूर्वरूपके लक्षण कहते हैं ॥ ४ ॥ हृदय, गुदा, कोष्ठ इन्हों में सूईके चभकाकी तरह होना, अंगों की शिथिलता, मलका नहीं उतरना और अफारा अन्नका नहीं पकना होता है तिन छः प्रकार के अतीसारों में वातकरके उपजे अतिसार में चिकना ॥ ५ ॥ अल्प और शब्द तथा शूलसे संयुक्त बंधा हुआ' रूखा झागोंसे सहित पतला और गांठोंवाला बारंबार ॥ ६ ॥ दग्धहुये गुडके समान प्रकाशवाला और पिच्छा तथा परिकर्त्तिकासे संयुक्त मलको सूखामुखवाला भ्रष्टगुदावाला और हृष्टरूपरोमोंबाला. ऐसा मनुष्य विशेषकरके कुपितहुए की तरह निकालता है ॥ ७ ॥ पित्तेन पीतमसितं हारीतं शाद्वलप्रभम् ॥ सरक्तमतिदुर्गन्धं तृण्मूच्छस्वेददाहवान् ॥ ८॥ सशूलपायुसन्तापं पाकवाञ्लेष्मणा घनम् ॥ पिच्छिलं तन्तुमच्छ्रेतं स्निग्धमांसं कफान्वितम् ॥ ९ ॥ अभीक्ष्णं गुरु दुर्गन्धं विबद्धमनुवद्धरुक् । निद्रालुरलसोऽन्नद्विडल्पाल्पं सप्रवाहिकम् ॥ १० ॥ सरोमहर्षः सोत्क्लेशो गुरुवस्तिगुदोदरः॥कृतेऽप्यकृतसंज्ञश्चसर्वात्मासर्वलक्षणः॥ ११ ॥ पित्तकरके उपजे अतिसार में पीला और सफेद रंगसे रहित और हरा और हरी दूबके समान कांतिवाला और रक्तरंगवाला अत्यन्त दुर्गंधवाला और शूल तथा गुदाके सन्तापसे संयुक्त मलको तृषा, मूर्च्छा, पसीना, दाहवाला || ८ || और पाकवाला मनुष्य निकासता है और कफकरके उपजे अतिसार में करडा और पिच्छिल और तांतोंवाला सफेदरंगवाला और स्निग्ध और कच्चा और कफसे अन्वित ॥ ९ ॥ अत्यन्त भारी, दुर्गंधवाला और बन्धाहुआ, पश्चात् शूलकरनेवाला प्रवाहिका से संयुक्त, अल्प अल्प मलवाला, नींदवाला, आलस्यवाला, अन्नका वैरी ॥१०॥ रोमांचबाला, उत्क्लेशसे सहित, बस्तिस्थान गुदा, पेटमें भारीपनवाला और किये हुये भी विष्ठाके त्याग में नहीं विष्ठा त्यागको माननेवाला मनुष्य निकलता है और सन्निपातसे उपजे अतिसार में तीनों दोषों के लक्षण जानने ॥ ११ ॥ भयेन क्षोभिते चित्ते सपित्तो द्रावयेच्छकृत् ॥ वायुस्ततोऽति सार्खेत क्षिप्रमुष्णं द्रवं प्लवम् ॥ १२ ॥ वातपित्तसमं लिंगैराहुस्तद्वच्च शोकतः ॥ भयकरके क्षोभितहुये,चित्तमें पित्तसे मिलाहुआ वायु विष्ठाको पतला करता है पीछे क्षिप्र गरम पतला तिरता मल निकसता है ॥ १२ ॥ और शोकसे क्षुभितहुये चित्तमेंभी पूर्वोक्तरूप अर्थात् भयजनित अतिसार में निकसेहुये मलके समान मल निकसता है ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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