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_ निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (३९१) पित्तोत्तरा नीलमुखां.रक्तपीतासितप्रभाः॥ ३४ ॥ तन्वस्रस्रा विणो विस्रास्तनवो मृदवः श्लथाः॥ शुकजिह्वायकृत्खण्डजलोकावक्रसन्निभाः ॥३५॥ दाहपाकज्वरस्वेदतृण्मूच्छारुचि मोहदाः ॥ सोष्माणो द्रश्नीलोष्णपीतरक्तामवर्चसः ॥३६॥ यवमध्या हरित्पीतहारिद्रत्वङ्नखादयः॥
और पित्तकी अधिकतासे नीलामुखबाले और रक्त, पीत, कृष्ण, कांतियोंवाले ॥ ३४ ॥ और सूक्ष्म रक्तको शिरानेवाले और कची गंधवाले और महीन और कोमल और स्विन्नमांसआदिकी तरह श्लथरूप तोतेकी जीभ और यकृत्खंड और जोखका मुखके तुल्य ॥३५ ।। दाह, पाक, ज्वर, पसीना, तृषा, मूर्छा, अरुची, मोहके देनेवाले और गर्माईसे संयुक्त, द्रव, नीला, गरम, पीला, रक्त, श्वास, विष्ठावाले ॥ ३६ ॥ यवके मध्यभागकी तरह संस्थानवाले और हरे पीले हलदीके समान त्वचा और नख आदिवाले पित्तकी अधिकतावाले बवासीरके मस्से होते हैं ।
श्लेष्मोल्बणा महामूला घना मन्दरुजाः सिताः॥३७॥ उच्छूनोपचिताः स्निग्धाः स्तब्धवृत्तगुरुस्थिराः ॥ पिच्छिलाः स्तिमिताः श्लक्ष्णाः कण्डाढ्याः स्पर्शनप्रियाः ॥ ३८ ॥ करीरप नसास्थ्याभास्तथागोस्तनसन्निभाः॥ वंक्षणानाहिनः पायुबस्तिनाभिविकर्तिनः॥३९॥ सकासश्वासहल्लासप्रसकारुचिपीनसाः॥ मेहकृच्छशिरोजाड्यशिशिरज्वरकारिणः॥४०॥ क्लैब्याग्निमार्दवच्छदिसामप्रायविकारदाः॥वसाभाःसकफप्राज्यपुरी'पाः सप्रवाहिकाः॥४१॥ न स्त्रवन्ति न भिद्यन्ते पांडुस्निग्धत्व गादयः संसृष्टलिङ्गाः संसर्गानिचयात्सर्वलक्षणाः॥ ४२ ॥
और बी जडवाले और करडे और मंदशूलवाले और सफेदरंगवाले ॥ ३७ ॥ ऊंचाईसे बढेहुये और चिकने और स्तब्धरूप गोल भारे और स्थिररूप और पिच्छलपनेसे संयुक्त और स्तिमित और सूक्ष्म और खाजिसे संयुक्त स्पर्शकरनेको प्रिय माननेवाले ॥ ३८ ॥ करीर और पनसकी गुठलीके समान कांतिवाले और मुनक्कादाखोंकी तुल्य और अंडसंधियोंमें अफारावाले और गुदा, बस्ति, नाभिको विकर्तित करनेवाले ॥ ३९ ॥ खांसी, श्वास, थुकथुकी, प्रसेक, अरुची, पीनस, प्रमेह, मूत्रकृच्छू, शिरका जडपना, शीतज्वर इन्होंको करनेवाले ॥ ४० ॥ और नपुंसकता अग्निकी मंदता, छर्दि आमके दोषको देनेवाले और वसाके समान कांतिवाले कफ और चिकनाई संयुक्त विष्ठावाले और प्रवाहिकासे संयुक्त ॥ ४१ ॥ और न झिरनेवाले न भेदितहोनेवाले और पांडु तथा स्निग्धरूप त्वचाआदिवाले कफकी अधिकतावाले बवासीरके मस्से होते हैं और दोदोषोंके
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