________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (३८१) उष्णक्लान्तस्य सहसा शीताम्भो भजतस्तृषम् ॥ ऊष्मारुद्धो गतः कोष्ठं यां कुर्य्यात्पित्तजैव सा ॥५५॥ या च पानातिपानोत्था तीक्ष्णाग्नेः स्नेहजा च या॥ स्निग्धगुर्वम्ललवणभोजनेन कफोद्भवा ॥५६॥ तृष्णा रसक्षयोक्तेन लक्षणेन क्षयात्मिका ॥शोषमोहज्वराद्यन्यदीर्घरोगोपसर्गतः॥ या तृष्णा जायते तीव्रा सोपसर्गात्मिका स्मृता ॥ ५७ ॥ गर्माईकरके ग्लानिको प्राप्तहुयेके और शीतल पानीको सेवनेवाले मनुष्यके रुकी हुई गर्माई कोष्ठमें प्राप्तहो तृषाको करती है वह पित्तसे उपजी तृषा जाननी ॥ ५५ ॥ पान और अतिपानसे • जो तृषा उपजती है और तीक्ष्ण अग्निवाले मनुष्यके स्नेहसे उपजी जो तृषा है वह भी पित्तसे उप. जती है और चिकना भारी, खट्टा, सलोना इन्होंकरके संयुक्त भोजनकरके जो तृषा उपजती है वह कफसे उपजी जाननी ॥५६॥ शोक मोह ज्वर इनआदि अन्य दीर्घरोगोंके अनुबंधसे जो तेज तृषा उपजती है वह मुनिजनोंने उपसर्गजा तृषा मानीहै ॥ १७ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां
निदानस्थाने पंचमोऽध्यायः ॥ ५ ॥
षष्ठोऽध्यायः।
-vocar__ अथातो मदात्ययनिदानं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर मदात्ययनिदाननामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे। तीक्ष्णोष्णरूक्षसूक्ष्माम्लं व्यवाय्याशुकरं लघुविकाशि विशदं मद्यमोजसोऽस्माद्विपर्ययः॥१॥ तक्षिणादयो विषेऽप्युक्ताश्चित्तोपप्लाविनो गुणाजीवितान्ताय जायन्तेविषे तूत्कर्षवृत्तितः२॥ तीक्ष्ण, रूखा, गरम, सूक्ष्म, अम्ल, व्यवायी अर्थात् सकलशरीरमें व्यापनेवाला और शीघ्र करनेवाला हलका विकाशी विशद मद्य है इस मद्यसे पराक्रमका विपरतिपना है ॥ १ ॥ चित्तको भ्रम करनेवाले तीक्ष्णआदि गुण विषमेंभी होते हैं परंतु विषमें स्थितहुये तक्ष्णिआदिगुण उत्कर्षवर्तनसे मारणके अर्थ उत्पन्न होते हैं ॥ २॥
तीक्ष्णादिभिर्गुणैर्मद्यं मन्दादीनोजसो गुणान्।।दशभिर्दश संक्षोभ्य चेतो नयति विक्रियाम्॥३॥ आये मद्ये द्वितीयेस प्र मादायतने स्थितः ॥ दुर्विकल्पहतो मूढः सुखमित्यधिमुच्य
For Private and Personal Use Only