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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् डनमंसयोः ॥ अशक्तिर्भक्षणेहन्वोर्जुम्भणं कर्णयोः स्वनः॥ ॥ १४ ॥ निस्तोदः शङ्खयोर्मूर्षि वेदना विरसास्यता ॥ कषा- . यास्यत्वमथवा मलानामप्रवर्तनम् ॥१५॥ रूक्षारुणत्वगास्याक्षिनखमूत्रपुरीषता ॥ प्रसेकारोचकाश्रद्धाविपाकास्वेदजागराः॥ १६ ॥ कण्ठोष्ठशोषतृट्शुष्कौ च्छर्दिकासौ विषादिता॥ हर्षो रोमाङ्गदन्तेषु वेपथुः क्षवथाग्रहः ॥ १७॥ भ्रमः प्रलापो धर्मेच्छा विनामश्चानिलज्वरे॥ और बरका आगमन, गमन, क्षोभ, कोमलपना, पीडा, गरमाई, इन्होंका ॥ १० ॥ विषमपना और तिस अंगमें चलितरूपपीडाका होजाना और पैरोंमें सुप्तपना स्तंभ पांडियोंका उद्वेष्टन और परिश्रम ॥ ११ ॥ संधियोंका विश्लेषकी समान होजाना जांघोंकी शिथिलता और कटिका जकडबंधपना और संक्षुण्णहुई खेतीकी तरह पृष्ठभागका होजाना और निपीडितकी समान पेटका होजाना ॥ १२ ॥ और विशेषपनेसे पसालयाकी हड्डियोंका निपीडित होजाना और हृदयका जकड बंधपना और छातीमें चाबककी तरह चमका ॥ १३ ॥ दोनोंकंधोंमें पीडा और दोनों बाहुओंका भेद होना और दोनों कंधोंका पीडन और भक्षणमें ठोडियोंकी शक्तिका अभाव और जंभाई और कानोंमें शब्द ॥ १४ ॥ और कनपटियोंमें चमका और शिरमें शूल और मुखका विरसपना अथवा कसैलापना और मलोंकी अप्रवृत्ति ॥१५ ॥और त्वचा, मुख, नेत्र, नख, विष्ठाका रूखापन रक्तपना और प्रसेक, अरोचक, अश्रद्धा अन्नका नहीं पकना, पसीना न आना, जागना ॥१६॥और कंठका तथा होठका शोष और तृषा और सूखी खांसी और सूखी उकलाई और विषादपना और रोम, अंग, दंत, इन्होंमें हर्ष और कंपना और छींकका नहीं आना ॥ १७ ॥ और भ्रम, प्रलाप घामकी इच्छा, शरीरका न नमना ये सब लक्षण वातसे उपजे ज्वरमें होते हैं। युगपद्वयाप्तिरङ्गानां प्रलापः कटुवकता ॥ १८॥ नासास्यपाकाशीतेच्छा भ्रमो मूर्छा मदोऽरतिः॥ विस्रसः पित्तवमनं रक्तष्ठीवनमम्लकः ॥१९॥रक्तकोठोद्गमः पीतहरितत्वं खगादिषु ॥ स्वेदो निःश्वासवैगन्ध्यमतितृष्णा च पित्तजे ॥२०॥ और सब अंगोंका एक कालमें गरमाईसे व्याप्त होजाना और प्रलाप और मुखमें कड्डुवापन ॥ १८॥ नासिका और मुखका पकना और शीतलपदार्थकी इच्छा और भ्रम, मूर्छा, मद ग्लानि विटांस, पित्तका वमन, रक्तका थूकना और शरीरके भीतर दाह ॥ १९ ॥ और लाल मंडलोंका उपजना और त्वचाआदिमें पीलापना और हरितपना और पसीना और भीतरके श्वासमें दुर्गधपना और अत्यंत तृषा ये सब लक्षण पित्तज्वरमें होते हैं ॥ २० ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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