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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( ३५२ ) www.kobatirth.org अष्टाङ्गहृदये Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिक्तोषणकषायाल्परूक्षप्रमितभोजनैः ॥ १४ ॥ धारणोदीरणनिशाजागरात्युच्चभाषणैः ॥ क्रियातियोगभीशोकचिन्ताव्यायाममैथुनैः॥१५॥ ग्रीष्माहोरात्रिभुक्तान्ते प्रकुप्यति समीरणः। पित्तं कलतीक्ष्णोष्णपटुक्रोधविदाहिभिः ॥ १६ ॥ शरन्मध्याह्ररात्र्यर्द्धविदाहसमयेषु च ॥ स्वाद्वम्ललवणस्निग्धगुर्वभिप्यन्दिशीतलैः ॥ १७ ॥ आस्यास्वप्न सुखाजीर्णदिवास्वप्नातिबृंहणैः ॥ प्रच्छर्दनाथयोगेन भुक्तमात्रवसन्तयोः ॥ १८ ॥ पूर्वाहे पूर्वरात्रे च श्लेष्मा द्वंद्वन्तु संकरात् ॥ और कटु, चर्चरा, कषैला, अल्प, रूखा, प्रमाणित किया अर्थात् समयको उलंघ के भोजन करके || १४ || अधोवायुआदि वेगोंको धारण करना तथा उदीर्ण करना | और रात्रि में जागना ऊंचा बोलना और वमन विरेचन आस्थापन बस्ति, इन्होंका अत्यंत सेवना और भय, शोक, चिंता व्यायाम मैथुन इनसे ॥ १५ ॥ तथा वर्षाऋतु में दिन और रात्रिके अंतके समय में वायु कुपित होता है और कडुआ, खट्टा, तक्ष्णि, गरम, सलोना, क्रोध, विदाही, इन्होंकर के ॥ १६ ॥ शरद ऋतु में और दुपहर अर्धरात्र और दाहके समयमें पित्त कुपित होता है. और स्वादु, खड्डा, नमक, चिकना भारा, अभिस्यंदी 'अर्थात् कफकारी, शीतल पदार्थोंकरके ॥ १७ ॥ और सुंदर शय्यापै शयन, सुख अजीर्ण, दिनका शयन, अत्यंत बृंहणपदार्थो का सेवन, इन्होंकरके और वमनको नहीं लेनेसे भोजनं करतेही तत्काल और वसंतऋतु ॥ १८ ॥ दिनके पहिले भागमें और रात्रिके पहिले भाग कफ कुपित होता है और पूर्वोक्त योगों के मिश्रीभावसे बात पित्त और वातकफ और पित कफ दो दो दोष कुपित होते हैं | मिश्रीभावात्समस्तानां सन्निपातस्तथा पुनः ॥ १९ ॥ संकीर्णा - जीर्णविषमविरुद्धाध्यशनादिभिः ॥ व्यापन्नमद्यपानीयशुष्क शाकाममूलकैः ॥ २० ॥ पिण्याकमृद्यवसुरापूतिशुष्ककृशामिषैः ॥ दोषत्रयकरैस्तैस्तैस्तथान्नपरिवर्त्ततः ॥ २१ ॥ धातोर्दुष्टात्पुरोवाताग्रहवेशाद्विषाद्गरात् ॥ दुष्टान्नात्पर्वताश्लेषाद्यहैजन्मक्षपीडनात् ॥ २२ ॥ मिथ्यारोगाच्च विविधात्पापानाञ्च निषेवणात् ॥ स्त्रीणां प्रसववैषम्यात्तथा मिथ्योपचारतः ॥२३॥ फिर पूर्वोक्त सब योगोंके मिश्रभिावसे सन्निपात अर्थात् तीनों दोप कुपित होते हैं ॥ १९ ॥ और अनेक प्रकारके मिलेहुये और अजीर्ण और विषम और विरुद्ध अध्यशन इन आदि भोजन For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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