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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (३०५) तस्मात्तं विधिवद्युक्तैरन्नपानेन्धनैर्हितैः॥ पालयेत्प्रयतस्तस्य स्थितौ ह्यायुर्बलस्थितिः ॥ ७२॥ ... तिसकारणसे विधिपूर्वक युक्त किये अन्न पान पथ्यसे तिस अग्निकी सावधान होके रक्षा करै क्योंकि तिसकी स्थिति होनमें आयु और बलकी स्थिति होती है ॥ ७२ ॥ समः समाने स्थानस्थे विषमोऽग्निर्विमार्गगे ॥ पित्ताभिमूच्छिते तीक्ष्णो मन्दोऽस्मिन्कफपीडिते॥७३॥ अपने आशयमें समान वायु स्थित रहै तब समअग्नि रहता है और अपने स्थानको त्यागके. अन्यमार्गमें गमनकरनेवाला समान वायु हो तब विषमअग्नि रहता है और पित्तकरके पीडित जब समानवायु होता है तब तीक्ष्ण अग्नि होता है और कफकरके पीडित जब समानवायु होता है तब मंद अग्नि रहता है ॥ ७३॥ समोऽग्निर्विषमस्तीक्ष्णो मन्दश्चैवं चतुर्विधः॥ यः पचेत्सम्यगेवान्नं भुक्तं सम्यक्समस्त्वसौ॥ ७४॥ ___ सम, विपम, तक्षिण, मंद इन नामोंसे अग्नि चारप्रकारका है जो अच्छीतरह भोजन किये अन्नको अच्छीतरह पकावे वह समअग्नि होता है । ७४ ॥ विषमोऽसम्यगप्याशु सम्यक्त्वापि चिरात्पचेत् ।। तीक्ष्णो वह्निः पचेच्छीघ्रमसम्यगपि भोजनम् ॥ ७५॥ . अच्छीतरह भोजन किये अन्नको कभी देरमें पकावै अथवा देश, काल, मात्रा, विधि इन्होंसे भ्रष्ट भोजन किये अन्नको भी कभी तत्काल पकावै वह विषम अग्नि होता है और जो विधिसे रहित अन्नको तत्काल पकावै वह तक्षिण अग्नि होता है ॥ ७९ ॥ मन्दस्तु सम्यगप्यन्नमुपयुक्तं चिरात्पचेत् ॥ कृत्वाऽऽस्यशोषाटोपान्त्रकूजनाऽऽध्मानगौरवम् ॥७६ ॥ और जो अच्छीतरह भोजन किये अन्नको चिरकालमें पकावै वह मंदअग्नि होता है और मुखका शोष, गुडगुडाशब्द, आंतोंका बोलना, अफारा, भारीपन इन्होंको पहिले उपजाकर पीछे अन्नको पकाता है ॥ ७६ ॥ सहजं कालजं युक्तिकृतं देहबलं त्रिधा॥ तत्र सत्त्वशरीरोत्थं प्राकृतं सहजं बलम् ॥ ७७॥ सहज, कालसे उत्पन्न, युक्तिसे उत्पन्न इन भेदोंसे देहका बल तीनप्रकारका है तिन्होंमें सत्व रज. तम, इन्होंसे उत्पन्न हुआ और शरीरसे उत्पन्न हुआ और स्वाभाविक सहज बलहै ॥ ७७ ।। वयस्कृतमृतृत्थं च कालजं युक्तिजं पुनः॥ विहाराहारजनितं तथोर्जस्करयोगजम् ॥७८॥ . For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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