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(२९८)
अष्टाङ्गहृदयेजीभमें सोलह नाडियां, हैं, तिन्होंके मध्यमें जीभके नीचे दो रसको बोधन करनेवाली और दो वाणीको प्रवर्तन करनेवाली नाडियोंको न वीधै अर्थात् इनमें शस्त्रपात न करै नासिकामें ॥२८॥
विंशतिर्गन्धवेदिन्यौ तासामेकां च तालुगाम् ॥
षट्पञ्चाशन्नयनयोनिमेषोन्मेषकर्मणी ॥ २९ ॥ चौवीस नाडियां है तिन्होंके मध्यमें दो गंधको जाननेवाली और एक तालुमें प्राप्त होनेवाली ऐसी तीन नाडियोंको न वींधै और दोनों नेत्रोंमें छप्पन नाडियां हैं तिन्होंके मध्यमें आंखका मीचना और खोलनाके कर्मको करनेवाली ॥ २९ ॥
द्वे द्वे अपाङ्गयोद्धे च तासां षडिति वर्जयेत्॥
नासानेत्राश्रिताः षष्टिर्ललाटे स्थपनीश्रिताम् ॥३०॥ दो दो और नेत्रके अपांगदेशमें दो ऐसी छ:नाडियोंको न वींधै नासिका और नेत्रमें आश्रित हुई ६० नाडियां मस्तकमें हैं तिन्होंमेंसे स्थपनी मर्ममें आश्रित हुई ।। ३० ।।
तत्रैकां द्वौ तथाऽऽवतौ चतस्त्रश्च कचान्तगाः॥
सप्तवं वर्जयेत्तासां कर्णयोः षोडशात्र तु ॥३१॥ एक नाडीको और दो आवर्तनामवाले मर्मोको और ४ केशांतमर्ममें स्थित होनेवाली नाडी ऐसे सात नाडियोंको न वैधि और दोनों कानोंमें १६ नाडियां हैं ॥ ३१ ॥ - द्वे शब्दबोधने शङ्खौ शिरास्ता एव चाश्रिताः॥
द्वे शङ्गसन्धिगे तासां मूर्ध्नि द्वादश तत्र तु ॥३२॥ तिन्होंमेंसे शब्दको बोधन करनेवाली दो नाडियोंको नवीधै और कनपटियोंमें वेही १६ नाडियां आश्रित होरही हैं तिन्होंमेंसे कनपटियोंकी संधिमें प्राप्त हुई दो नाडियोंको न वधैि शिरमें बारह नाडियां हैं ॥ ३२ ॥
एकैकां पृथगुत्क्षेपसीमन्ताधिपतिस्थिताम् ॥
इत्यवेध्यविभागार्थं प्रत्यङ्गं वर्णिताः शिराः॥३३॥ तिन्होंमेंसे उत्क्षेपमें दोनों उत्क्षेपमों में २ और पांचों सीमंतमा ५ और अधिपतिमर्ममें एक ऐसे आठ नाडियोंको न वींधै इस प्रकारसे यह अंग प्रत्यंगकी वींधनेके अयोग्य नाडी प्रकाशित की ॥ ३३ ॥
अवेध्यास्तत्र कात्स्न्येन देहेऽष्टानवतिस्तथा ॥
संकीर्णा ग्रथिताः क्षुद्राः वक्राः सन्धिषु चाश्रिताः ॥ ३४ ॥ तिन सब नाडियोंके मध्यमें देह के बीच ९८ नाडी वीधनेके योग्य नहीं कही हैं और आपसमें बंधीहुई और ग्रथित हुई और छोटी और कुटिल हुई और संधियोंमें आश्रितभी नाडियां बांधनेके योग्य नहीं हैं ।। ३४ ॥
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