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शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (२९७) जालंधर नामवाली सोलह नाडियें और भीतरको मुखवाली तीन शिरा नहीं वींधनी और कटीमें बत्तीस नाडियें हैं, तिन्होंके मध्यमें दोनों तर्फकी अंड संधियोंमें दो दो नाडियं स्थित हैं ॥ २१ ॥
द्वे द्वे कटीकतरुणे शस्त्रेणाष्टौ स्पृशेन्न ताः॥
पार्श्वयोः षोडशैकैकामूर्ध्वगां वर्जयेच्छिराम् ॥ २२॥ कटीकतरुणनामक मर्मस्थानमें दोनों तर्फको दो दो नाडियां हैं इन आठ नाडियोंको शस्त्रसे वीधैं नहीं और दोनों पसलियों में सोला नाडियां हैं, तिन्होंमेंसे ऊपरको गमन करनेवाली एक एक नाडीको शस्त्रसे वीधै नहीं ।। २२ ॥
द्वादशद्विगुणाः पृष्ठे पृष्ठवंशस्य पार्श्वगे॥
द्वे द्वे तत्रोर्ध्वगामिन्यो न शस्त्रेण परामृशेत् ॥ २३ ॥ पृष्टभागमें चौवीस नाडियां स्थित हैं, तिन्होंमेंसे पीठके वांशके दोनों तर्फ उर्ध्वगमन करनेवाली दो दो नाडियां स्थित हैं, तिन चार नाडियोंको शस्त्रसे न वींधै ॥ २३ ॥
पृष्ठवजठरे तासां मेहनस्योपरि स्थिते ॥ रोमराजीमुभयतो द्वे द्वे शस्त्रेण न स्पृशेत् ॥२४॥ चत्वारिंशदुरस्यासां चतुर्दश न वेधयेत् ॥
स्तनरोहिततन्मूलहृदये तु पृथग्द्वयम् ॥ २५॥ . पेटमें चौवीस नाडियां हैं तिन्होंमेसे लिंगके ऊपर स्थित हुये रोमोंकी पंक्तियोंके दोनों तर्फको दो दो नाडी स्थित हैं, तिन चार नाडियोंको शस्त्रसे न वीधै छातीमें चालीस नाडियां हैं, तिन्होंमेंसे चौदहको न वींधे और रतनरोहित और स्तनमूल और हृदय इन मर्मों में अलग २ दो दो नाडियोंको न वींधै ॥ २४ ॥ २५ ॥
अपस्तम्भाख्ययोरेका तथापालापयोरपि ॥
ग्रीवायां पृष्ठवत्तासां नीले मन्ये कृकाटिके ॥२६॥ अपस्तंभनामवाली मर्मकी एक एक सिराको तथा अपालाप मर्मकी एक एक सिराको न वींधै प्रविा अर्थात् नाडीनमें चौवीस नाडियाँ हैं तिन्होंके मध्यमें दो नीलनामवाले और दो मन्यानामवाले और दो कृकाटिकनामवाले ॥ २६ ॥
विधुरे मातृकाश्चाष्टौ षोडशेति परित्यजेत् ॥
हन्वोः षोडश तासां द्वे संधिवन्धनकर्मणी ॥ २७॥ दो विधुरनामवाल और आठ मातृकानामवाले सोलह मर्मोको न वीधै और दोनों ठोडियोंमें सोलह नाडियां हैं, तिन्होंमेंसे संधिका वेधकर्म करनेवाली दो नाडियोंको न वीधै ॥२७॥
जिह्वायां हनुवत्तासामधो द्वे रसबोधने ॥ द्वे च वाचः प्रवर्तिन्यौ नासायां चतुरुत्तरा ॥ २८॥
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