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शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (२८३) गर्भकी वृद्धि और प्रसव और पीडा क्लेद रक्तस्तुति, पीडन इनकारणोंकरके इसप्रकारकरके डेढ महीनातक सूतिका स्त्री अपथ्य आहारविहारादिको त्यागै, और इसी कालसे उपरान्त सूतिकानाम से अलग होती है अथवा बालकके जन्मके पीछे जब फिर आर्तव अर्थात् कपडे आवै तब सूतिकानामको त्यागती है ॥ १०२॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽटांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां
शारीरस्थाने प्रथमोऽध्यायः ॥ १ ॥
द्वितीयोऽध्यायः।
अथातो गर्भव्यापदं शारीरं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर गर्भव्यापद शारीरनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे ।
गर्भिण्याः परिहार्याणां सेवया रोगतोऽपि वा।
पुष्पे दृष्टेऽथवा शूले बाह्यान्तः स्निग्धशीतलम् ॥१॥ गर्भिणीके पूर्वोक्त अपथ्य आहार और विहारआदिके सेवनेकरके अथवा रोगसे फूल ( रक्त) . अथवा शूलके दर्शन होनेमें बाहिर और भीतर स्निग्ध तथा शीतल पदार्थों को उपयुक्त करना॥ १॥
सेव्याम्भोजहिमक्षीरीवल्ककल्काज्यलोपताम् ॥
धारयेद्योनिबस्तिभ्यामााान् पिचुनक्तकान् ॥ २॥ - खश, कमल, चंदन, दूधवाले वृक्षोंकी छाल इन्होंका कल्क और घृतसे लेपितकरे और अतिशयकरके गीले ऐसे रूईके कपडेको योनि तथा बस्तिकरके ऊपर धारण करै ॥२॥
शतधौतघृताक्तां स्त्री तदम्भस्यवगाहयेत् ॥
ससिताक्षौद्रकुमुदकमलोत्पलकेसरम् ॥३॥ सोवार धोये घृतकरके अभ्यक्त करी स्त्रीको पूर्वोक्त द्रव्योंके पानीमें स्नान करावै पीछे मिश्री, शहद और कुमोदनी, कमल, सफेदकमल इन्होंका केसर ॥ ३ ॥
लिह्यारक्षीरघृतं खादेच्छृङ्गाटककसेरुकम् ॥
पिबेत्कान्ताजशालूकबालोदुम्बरवत्पयः ॥४॥ इन्होंका अवलेह बना चाटे, और दूधसे निकसे घृतको खावै और सिंघाडा तथा कसेरूफलको खावै, और गंधप्रियंग, कमल, सफेद कमलकी जड, गूलरका कच्चा फल, इन्हों करके सिद्ध किये दूधको पावै ॥ ४॥
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