________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शारीरस्थानभाषाटीकासमेतम् । . (२८१). कुष्ठतालीसकल्कं वा सुरामण्डेन पाययेत् ॥
यूषेण वा कुलत्थानां बिल्वजेनासवेन वा ॥ ८९॥ कूट और तालीशपत्रके कल्कको मदिराके संग अथवा कुलथियोंके क्वाथके संग अथवा बेलगिारे के आसवके संग पावै ।। ८९॥
शताबासर्षपाजाजीशिग्रुतीक्ष्णकचित्रकैः ॥ __ सहिङगुकुष्टमदनैमूत्रे क्षीरे च सार्षपम् ॥ ९०॥ शतावरी, सरसों, जीरा, सहोजना, चव्य, चीता, हींग, कूट, मैनफल, गोमूत्र, दूध इन्होंमें सरसोंके ॥९ ॥
तैलं सिद्धं हितं पायौ योन्यां वाप्यनुवासनम् ॥
शतपुष्पा वचा कुष्टकणासर्षपकल्कितः ॥ ९१ ॥ तेलको सिद्ध कर गुदामें तथा योनिमें अनुवासन देना हित है अथवा सौंफ, वच, कूट, पीपल, सरसों इन्होंके कल्कमें ॥ ९१ ॥
निरूहः पातयत्याशु सस्नेहलवणोऽपराम् ॥
तत्सङ्गे ह्यनिलो हेतुः सानियात्याशु तज्जयात् ॥ ९२ ॥ स्नेह और नमक मिली निरूहबस्ति दीजावे तो जेरको निकासती है क्योंकि तिस जेरके रोक नेमें वायु कारण है तिसवायुको जीतनेसे जेर आप निकसजाती है ॥९२ ॥
कुशला पाणिनाऽक्तेन हरेत्कृप्तनखेन वा ॥
मुक्तगर्भापरां योनि तैलेनाङञ्च मर्दयेत् ॥ ९३॥ अथवा चतुर दाई घृतमें भिगोयेहुये और कटेहुये नखोंवाले हाथकरके जेरको निकासै पीछे गर्भ और जेरसे मुक्तहुई योनिको और शरीरको तेलकरके मर्दित करै ॥ ९३ ॥
मकल्लाख्ये शिरोबस्तिकोष्ठशूले तु पाययेत् ॥
सुचूर्णितं यवक्षारं घृतेनोष्णजलेन वा ॥ ९४॥ पीछे मक्कल्लरोग उपजे तो चूर्णित किये जवाखारको गरम घृतके संग व गरम पानीके संग पान करावै ।।९४ ॥
धान्याम्बु वा गुडव्योषत्रिजातकरजोन्वितम् ॥
अथ बालोपचारेण बालं योषिदुपाचरेत् ॥ ९५॥ अथवा, गुड, सुंठ, मिरच, पीपल, दालचीनी, इलायली, तेजपात इन्होंके चूर्णसे संयुक्त कांजीका पान करावै पीछे,जन्मेहुये बालकको बालकके योग्य आहार विहारादिकरके स्त्रीही उपाचरित करै ॥ ९५॥
For Private and Personal Use Only