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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २६० ) अष्टाङ्गहृदये कृत्वा सुधाश्मनां भस्म द्रोणं त्वितरभस्मनः ॥ मुष्ककोत्तरमादाय प्रत्येकं जलमूत्रयोः ॥ १३ ॥ चुन्नाकलीके द्रोणभर भस्मको पृथक् करे और मोखाआदि सत्र वृक्षोंके भस्मोंको द्रोणभर अर्थात् १०२४ तोले ग्रहणकरै परंतु मोखाका भस्म कुछ जबर लेना, पीछे एक एक भस्मको पानी और गोमूत्र में || १३ ॥ गालयेदर्द्धभारेण महता बाससा च तत् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यावत्पिच्छिलरक्ताच्छस्तीक्ष्णो जातस्तदा च तम् ॥ १४ ॥ आधे भारकरके महान् वस्त्रसे छाने जब पिच्छिल और रक्त और स्वच्छ और तीक्ष्ण ऐसा हो जावे तब तिसको ॥ १४ ॥ गृहीत्वा क्षारनिस्यन्दं पचेलौह्यां विघट्टयन् ॥ पच्यमाने ततस्तस्मिंस्ताः सुधाभस्मशर्कराः ॥ १५ ॥ ग्रहणकर लोहाकी कढाई में डालकर चलाता हुवा पकावै. पीछे पकते हुये तिसमें पूर्वोक्त चूना की भस्म और कंकर ॥ १५ ॥ शुक्तिक्षारपङ्कशङ्खनाभीश्चायसभाजने ॥ कृत्वाग्निवर्णान्वद्दुशः क्षारोत्थे कुडवोन्मिते ॥ १६ ॥ सीपी, खडिया, शंखकी नाभी इन्होंको लोहा के पात्र में अग्निके समान लाल बनाके बत्तीस तोले भर द्रव्यमें कईबार बुझाके मिलादे ॥ १६ ॥ निर्वाप्य पिट्वा तेनैव प्रतीवापं विनिक्षिपेत् ॥ श्लक्ष्णं शकृद्दक्षशिखिगृध्रकङ्ककपोतजम् ॥ १७ ॥ मुर्गा, मोर गीध, जलकाक कपोतकी बीटोंको महीन पीसकर मिलावै ॥ १७॥ चतुष्पात्पाक्षपित्तालमनोह्वालवणानि च ॥ परितः सुतरां चातो दर्व्यातमवघट्टयेत् ॥ १८ ॥ पीछे गायआदि पशु और पक्षियोंके पित्ते, हरताल, मनशिल, सब नमक इन्होंको मिलाके समाहित हुआ वैद्य करछीकरके चारों तर्फसे चलायमान करै ॥ १८ ॥ सवाष्पैश्च यदोत्तिष्ठेदुदुदैर्ले हवद्धनः ॥ अवतार्य ततः शीतो यवराशावयोमये ॥ १९ ॥ जब बाफोंवाले बुलबुलोंकर के लेहके समान घन होवे तब अग्निसे उतार शीतलकर लोहे के पात्रमें डाल जबकी राशि ॥ १९ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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