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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४६) अष्टाङ्गहृदये - प्रथम सूजन होकर पाकसे विशेषतासे व्रण अर्थात् घाव उपजता है तिसकारणसे पाककी रक्षा करता हुआ वैद्य यत्नसे शोजाकी. चिकित्सा करै ॥ १ ॥ सुशीतलेपसेकास्त्रमोक्षसंशोधनादिभिः॥ शोफोल्पोल्पोष्णरुक्चामः सवर्णः कठिनः स्थिरः ॥२॥ शीतल लेप, सेंक, रक्तका निकासना, वमन तथा विरेचन आदिकरके और प्रमाणसे अल्परूप अल्प गरम और अल्पपीडासे संयुक्त त्वचाके समान वर्णवाला कठिन और स्थिर शोजा कच्चा होता है ॥ २॥ पच्यमानो विवर्णस्तु रागी बस्तिरिवाततः ॥ स्फुटतीव सनिस्तोदः साङ्गमर्दविजृम्भिकंः॥३॥ त्वचाको वर्णसे वर्जित रागवाला चामकी बस्तिके समान विसृत और स्फुटित सुईकी चमकाके समान चमकासे संयुक्त और अंगको मर्दित करता हुआ और अँभाईसे संयुक्त ॥ ३ ॥ संरम्भारुचिदाहोषातृड्ज्वरानिद्रतान्वितः॥ स्त्यानं विष्यन्दयत्याज्यं व्रणवत्स्पर्शनासहः॥४॥ : और क्षोभ, अरुचि, दाह, रतिसे रहित, दाह, तृषा, ज्वर, अतिनिद्रासे अन्वित और जहाँ लगाया हुआ धूत पतला होजाता है और घावकी तरह स्पर्शको नहीं सह सकै ऐसा शोजा पच्यमान कहाता है ॥ ४॥ पक्केऽल्पवेगता ग्लानिः पाण्डुता बलिसम्भवः ।। नामों तेषून्नतिमध्ये कण्डूशोफादिमार्दवम् ॥ ५॥ पक्क हुये शोजेमें अल्पवेगपना, ग्लानि पांडुपना, वलियोंकी उत्पति और अंतमें नीचापना और मध्यमें ऊंचापना और खाज और शोजाआदिकी कोमलता ॥ ५ ॥ स्पृष्टे पूयस्य सञ्चारो भवेदस्ताविवाम्भसः॥ शूलं नर्तेऽनिलाद्दाहः पित्ताच्छोफः कफोदयात् ॥६॥ और स्पर्श करनेमें रादका संचार हो जैसे चामकी मशकमें पानीका होता है यह इसके पकनेका लक्षण है और वायुके बिना शूल नहीं होता और पित्तके विना दाह नहीं होता और कफके उदव विना शोजा नहीं होता ॥ ६ ॥ रागो रक्ताच्च पाकः स्यादतो दोषैः सशोणितैः॥ पाकेऽतिवृत्ते सुषिरस्तनुत्वग्दोषभक्षितः॥७॥ रक्तविना रोग नहीं होता, इसवास्ते रक्तकरके मिलेहुये वातआदि दोषोंकरके पाक होता है और अत्यंत पाकमें अंतर्गतस्थित होनेवाला और सूक्ष्मरूप त्वचावाला और रादकरके भक्षित ॥ ७ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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