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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (२३७) रक्त त्वतिष्ठति क्षिप्रं स्तम्भनीमाचरेक्रियाम् ॥ लोध्रप्रियङ्गुपत्तङ्गमाषयष्टयागैरिकैः ॥ ४८ ॥ जो रक्त नहीं स्थित होवे तो शीघ्रही स्तंभनरूप क्रियाको करै अर्थात् लोध, प्रियंगुलालचं-- दन, उडद, मुलहटी, गेहूं इन्होंकरके ॥ ४८ ॥ मृत्कपालाञ्जनक्षौममषीक्षीरीत्वगङ्कुरैः॥ विचूर्णयेद्रणमुखं पद्मकादिहिमं पिबेत् ॥४९॥ और माटीका कपाल, अंजन, रेशमी वस्त्र, स्याही, खिरनीकी छाल, और अंकुर इन्होंके चूर्णकरके शिराके घावके मुखको चूर्णित करै, और पद्मकादिगणके हिम अर्थात् शीतल कषायको बनाके पाम करै ॥ ४९॥ तामेव वा शिरां विध्येयधात्तस्मादनन्तरम् ॥ शिरामुखं च त्वरितं दहेत्तप्तशलाकया ॥ ५० ॥ और तिस वींधनेकी जगहसे अनंतर जगहको तिसी शिराको वीधे अथवा गर्म शलाईकरके शिराके मुखको शीघ्रही दग्ध करै ॥ ५० ॥ उन्मार्गगा यन्त्रनिपीडनेन स्वस्थानमायान्ति पुनर्न यावत् ॥ दोषाः प्रदुष्टा रुधिरं प्रपन्नास्तावद्धिताहारविहारभाक् स्यात् ॥५१॥ . यंत्रको पीडित करके अपने मार्गको लंबित करके अन्यमार्गमें आस्तृत हुये और रक्तको प्राप्त , हुये दुष्ट हुये दोष फिर जबतक अपने स्थानमें आके प्राप्त नहीं हों तबतक हितभोजन और हितक्रीडाको मनुष्य सेवता रहै ॥५१॥ . नात्युष्णशीतं लघु दीपनीयं रक्तेऽपनीते हितमन्नपानम् ॥ तदा शरीरं ह्यनवस्थितास्त्रमग्निर्विशेषादिति रक्षणीयः॥५२॥ रक्तको निकासे पीछे न तो अति उष्ण और न अति शीतल और हलका और अग्निको दीपन करनेवाला अन्नपान हित है क्योंकि चलितवृत्तियुक्त रक्तवाला शरीर हो जाता है, विशेषकरके इसमें जठराग्निकी रक्षा करनी उचित है ॥ १२ ॥ प्रसन्नवणेन्द्रियमिन्द्रियार्थानिच्छन्तमव्याहतपत्तृवेगम् ॥ सुखान्वितं पुष्टिबलोपपन्नं विशुद्धरक्तं पुरुषं वदन्ति ॥ ५३॥ प्रसन्नवर्ण और प्रसन्नइंद्रियोंवाला, और शब्दआदिकी इच्छा करनेवाला, और नहीं नष्ट हुये आग्निके वेगवाला, पुष्टि और बलकरके उपयुक्त मनुष्य शुद्धरक्तवाला होता है ।। ५३ ॥ इति बेरीनिवासिवेद्यपीडतरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां सूत्रस्थाने सप्तविंशोऽध्यायः ॥ २७ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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