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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
( २३१ )
स्नेहको पीनेवाला और वमन आदि पंचकमोंको किये हुये मनुष्यों की शिराको न वीं और नहीं दुई और न तिरछी और नहीं उत्थित हुई शिराको न वीधै ॥ ८ ॥ नातिशीतोष्णवाताभ्रेष्वन्यत्रात्ययिकाद्गदात् ॥ शिरोनेत्रविकारेषु ललाट्यां मोक्षयेच्छिराम् ॥ ९ ॥
और अतिशीतल, अतिगरम, बायु बद्दल इन्होंमें आत्ययिकरोगके विना शिराको न वीं शिर और नेत्रके विकारों में मस्तककी शिराको बींधै ॥ ९ ॥
अपांग्यामुपनास्यां वा कर्णरोगेषु कर्णजाम् ॥
नासारोगेषु नासाग्रे स्थितां नासाललाटयोः ॥ १० ॥
अथवा अपांगदेशकी अथवा नासिका के समीपकी शिराको वीं और कानके रोगों में कानके समीपकी शिराको वांधे और नासिका के रोगोंमें नासिका के अग्रभागमें स्थितहुई शिराको बींधे और पीनसरोगमें नासिका और मस्तकमें स्थितहुई शिराको बींधै ॥ १० ॥
पीनसे मुखरोगेषु जिह्वौष्ठहनुतालुगाः ॥
जनूर्ध्व ग्रन्थिषु ग्रीवाकर्णशंखशिरः श्रिताः ॥ ११ ॥
मुखके रोगों में जीभ, ओष्ठ, ठोडी, तालुमें स्थितहुई शिराओंको बांधे छाती और कंधों संधियोंके ऊपर जो ग्रंथियां होवें तो ग्रीवा कान कनपटी शिर इन्होंमें आश्रितहुई शिराको बींधै ११ उरोsपांगललाटस्था उन्मादेऽपस्मृतौ पुनः ॥
हनुसन्धौ समस्ते वा शिरां भ्रूमध्यगामिनीम् ॥ १२ ॥
उन्मादरोगमें छाती अपांग अर्थात् कटाक्ष, मस्तकमें स्थित दुई शिराओंकों वीं और रोगमें ठोडीकी संधिमें अथवा समस्त ठोडीमें शिराको अथवा स्रुकुटियोंके मध्यभागमें स्थितहुई शिराको बींधै ॥ १२॥
विद्रधौ पार्श्वशूले च पार्श्वकक्षास्तनान्तरे ॥ तृतीयकेंऽसयोर्मध्ये स्कन्धस्याश्चतुर्थके ॥ १३ ॥
विद्रधीरोग में और पसली शूल में, पसली, काख, चूचियोंके मध्यस्थान में स्थित हुई शिराओं को air तृतीयकज्वर में दोनों कांधों के मध्यमें शिराको वींधै, और चातुर्थिकज्वर में कंधे के नीचे की शिराको बींधे ॥ १३ ॥
प्रवाहिकायां शूलिन्यां श्रोणितो यंगुले स्थिताम् ॥ शुक्रमेद्रामये मेद्रे ऊरुगां गलगण्डयोः ॥ १४ ॥
शूलसे संयुक्त प्रवाहिका रोग में कटी से दो अंगुलपै स्थितहुई शिराको वांधे वीर्यरोगमें और लिंगरोग में लिंग में स्थितहुई शिराको बींधे गलरोगमें और गंडरोग में जांघ में स्थितहुई शिराको वधे १४
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