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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।। (१८३) और इसमें शहद और नमकआदि पदार्थ युक्तिकरके मिलाने अर्थात् शहद १६ तोले सेंधानमक १ तोला, जवाखार १ तोला ऐसे मिलाने और कोठीकी भांफोंकरके तप्त और खज अर्थात् काठकी करछीसे चलायेहुए कछुक गरम किये पानीको ॥ ४१ ॥
प्रक्षिप्य बस्तौ प्रणयेत्पायौ नात्युष्णशीतलम् ॥
नातिस्निग्धं नवा रूक्षं नाति तीक्ष्णं नवा मृदु ॥४२॥ बस्तिमें डालकर पीछे गुदामें प्राप्त करें और न अति गरम और न अति शीतल और न अति चिकना और न अति रूखा और न अति तक्षिण और न अति कोमल ॥ ४२ ॥
नात्यच्छसान्द्रं नो नातिमात्रं नापटु नाति च ॥
लवणं तद्वदम्लं च पठन्त्यन्ये तु तद्विदः॥४३॥ आर न अति स्वच्छ और न अति धन और न अति अल्प और न अति बहुत आर न अत्यंत अल्परूप नमकसे संयुक्त और न अति नमकसे संयुक्त और न अति अम्लरूप पानीको बस्तिके द्वारा गुदामें प्राप्त करै, ऐसे बस्तिकर्मको जाननेवाले अन्य वैद्य कहते हैं ॥ ४३ ।।
मात्रां त्रिपलिकां कुर्यात्स्नेहमाक्षिकयोः पृथक् ॥
कर्षाध माणिमन्थस्य स्वस्थे कल्कपलद्वयम् ॥ ४४ ॥ स्नेह और शहदको पृथक् पृथक् बारह बारह तोलेभर लेवै और सेंधानमक ६ मासे और कल्क ८ तोले लेवै ॥ ४४ ॥
सर्वद्रवाणां शेषाणां पलानि दश कल्पयेत् ॥
माक्षिकं लवणं स्नेहं कल्क क्वाथमिति क्रमात् ॥ ४५ ॥ शेष रहे सब द्रवोंको ४० तोलेभर लेबै पीछे प्रथम खरलमें शहदको डाल मर्दित करै पीछे । तिसमें सेंधानमक मिलाकर मेलित करै फिर लवणको मर्दित करके मिश्रित करै, पीछे स्नेह, पीछे कल्क, पीछे क्वाथको क्रमसे मिलावै ॥ ४५ ॥
आवपेत निरूहाणामेष संयोजने विधिः ॥
उत्ताने दत्तमात्रे तु निरूहे तन्मना भवेत्॥ ४६॥ निरूहके द्रव्योंको मिलानेकी विधि है और निरूहबस्तिको देनेमें सीधीतरह हुआ मनुष्य निरूहके वेगोंमेंही मनको लगानेवाला होवे ॥ ४६॥
कृतोपधानः सञ्जातवेगश्चोत्कटकः सृजेत् ॥
आगतौ परमः कालो मुहूतों मृत्यवे परम् ॥४७॥ तकियेको धारण कियेहुये प्राप्त वेगोंवाला, उत्कट आसनमें स्थित वह मनुष्य वेगोंको त्याग
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