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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७६) अष्टाङ्गहृदयेअच्छतिरह सेवित किया संशोधन बुद्धिकी प्रसन्नता, इंद्रियोंमें बल, धातुओंका स्थिरपना,, अग्निको. दीप्तता, चिरकालसे बुढापा आना इत्यादिको करता है । ६०॥ ' इति वेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां सूत्रस्थाने अष्टादशोऽध्यायः ॥ १८ ॥ एकोनविंशोऽध्यायः। अथातो वस्तिविधिमध्यायं व्याख्यास्यामः । इसके अनतर बस्तिविधिनामक अध्यायको व्याख्यान करेंगे । वातोल्वणेषु दोषेषु वाते वा वस्तिरिष्यते॥ उपक्रमाणां सर्वेषां सोऽग्रणीस्त्रिविधश्च सः ॥१॥ वातकी अधिकतावाले दोषोंमें अथवा वातरोगमें बस्तिकर्म श्रेष्ठ है और सब प्रकारकी चिकित्साओंमें यह बस्तिकर्म प्रधानरूप है और यह बस्तिकर्म तीन प्रकारकाहै गुदामें जो पिचकारी मारते हैं उसे बस्ती कहते हैं जिसमें घी तेल स्नेहकी पिचकारी लगाई जातीहै वह अनुवासन और काढे दूध तेलसे जो पिचकारी लगाई जाय वह निरूह कहाती है ॥ १ ॥ निरूहोऽन्वासनो बस्तिरुत्तरस्तेन साधयेत् ॥ • गुल्मानाहखुडप्लीहशुद्धातीसारशूलिनः॥२॥ एक निरूहण बस्ति दूसरा अनुवासन बस्ति तीसरा उत्तरबस्ति ऐसे हैं और निलहबस्तिकरके गुल्म, अफारा, खुडवात, प्लीहरोग, शुद्धअतीसार, शूल, ॥ २ ॥ जीर्णज्वरप्रतिश्यायशुक्रानिलमलग्रहान् ॥ वश्मिरीरजोनाशान् दारुणांश्चानिलामयान् ॥ ३॥ जीर्णज्वर, प्रतिश्याय, वीर्यग्रह, मलग्रह, वातग्रह, वर्मरोग, पथरीरोग, स्त्रियोंके फूलोंका नाश दारुणरूप वातरोग इन रोगवाले मनुष्योंको साधै ॥ ३ ॥ अनास्थाप्यास्त्वतिस्निग्धः क्षतोरस्को भृशं कृशः॥ आमातिसारी वमिमान् संशुद्धो दत्तनावनः॥४॥ अतिस्निग्ध, क्षत हुई छातीवाला, अत्यंतदुर्बल, आमातिसारवाला, छर्दिवाला, सम्यक्तरहसे शुद्धहुआ नस्यको ग्रहण किये ॥ ४ ॥ कासश्वासप्रमेहाशोंहिध्माध्मानाल्पवर्चसः॥ शूनपायुः कृताहारो बद्धच्छिद्रोदकोदरी ॥५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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