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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेत
(१६७) श्वासहृल्लासवीसर्पस्तन्यदोषोलरोगिणः॥
अवम्या गर्भिणी रूक्षः क्षुभितो नित्यदुःखितः॥३॥ श्वास, हलास, विसर्प, दूधदोष, ऊर्ध्वरोग इन रोगोंवाले मनुष्योंको विशेषकरके वमन करवाकै और गर्भवाली स्त्री-रूक्ष क्षुधावाला-नित्यप्रति दुःखित ॥ ३॥
बालवृद्धकृशस्थूलहृद्रोगिक्षतदुर्बलाः॥
प्रसक्तवमथुप्लीहतिमिरक्रीमिकोष्ठिनः॥४॥ बालक, वृद्ध, कृश, स्थूल, हृद्रोगी, क्षतरागी, दुर्बल प्रसक्तछर्दिवाला, प्लीहरोगी, तिमिररोगी, कृमिकाष्ठवाला ॥ ४ ॥
ऊर्ध्वप्रवृत्तवाय्वस्रदत्तवस्तिहतस्वराः ॥
मूत्राघात्युदरी गुल्मी दुर्वमोऽत्यग्निरर्शसः ॥५॥ ऊपरको प्रवृत्त हुआ वातरक्तरोगी, बस्तिकर्मको लियेहुये, हतस्वरवाला, मूत्राघातरोगी. उदररोगी, गुल्मरोगी, दुर्वमनवाला, अतितीक्ष्णअग्निवाला, बवासारवाला ॥ ५ ॥
उदावर्त्तभ्रमाष्ठीलापार्यरुग्वातरोगिणः ॥
ऋते विषगराजीर्णविरुद्धाभ्यवहारतः ॥६॥ उदावर्त, भ्रम, अष्ठीला, पसलीशूल, वातरोगोंवाले मनुष्य वमनके योग्य नहीं हैं परंतु विष, . गर, अजीर्ण, विरुद्धभोजनसे पीडित इन रोगियोंकोभी वमन कराना उचित है ॥ ६ ॥
प्रसक्तवमथोः पूर्वे प्रायेणामज्वरोऽपि च ॥
धूमान्तैः कर्मभिर्वाः सर्वैरेव त्वजीणिनः॥७॥ गर्भिणी, रूक्ष, क्षुधित, नित्यदुःखित, बालक, वृद्ध, कृश, स्थूल, हृद्रोगी, क्षत, दुर्बल ये सब और आमज्वरवाला, अजीर्णरोगी इन सबोंको धूमके अंततक सब कोंकरके वर्जिदेवै अर्थात गंडूषादिभी न करावे ॥ ७ ॥
विरेकसाध्या गुल्माशझविस्फोटव्यंगकामलाः॥
जीर्णज्वरोदरगरच्छर्दिप्लीहहलीमकाः॥८॥ गुल्म, बवासीर, विस्फोट, व्यंगरोग, कामला, जीर्णज्वर, उदररोग, विषरोग, छर्दी, प्लीहरोग, हलोमक, ॥ ८॥ . .
विद्रधिस्तिमिरं काचः स्यन्दः पक्वाशयव्यथा ॥
योनिशुक्राशया रोगाः कोष्ठगाः कृमयो व्रणाः ॥ ९॥ विद्रधी, तिमिररोग, काचरोग, स्पंदरोग, पक्काशयकी पीडा, योनिरोग, आशयरोग, कोष्ठगतरोग, कृमिरोग, व्रणरोग ॥ ९॥
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