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(१४४)
मष्टाङ्गहृदयेरसाञ्जनस्य महतः पञ्चमूलस्य गुग्गुलोः॥
शिलाजतुप्रयोगश्च साग्निमन्थरसा हितः ॥ २३ ॥ रसोतका सेवन-बृहत् पंचमूलका सेवन गूगलकासेवन-शिलाजीतका प्रयोग-अरनीका रस अतिस्थूलतामें हितहै ॥ २३ ॥
विडङ्गं नागरं क्षारः काललोहरजो मधु ॥
यवामलकचूर्णश्च योगोऽतिस्थौल्यदोषजित् ॥ २४ ॥ वायविडंग-सूठ-जवाखार-कालालोहेका चूर्ण-शहद-और यत्र तथा आंमलोंका चूर्ण इन्होंका सेवनरूप योग अतिस्थूलपनेको नाशता है ॥ २४ ॥
व्योषकदीवराशियविडङ्गातिविषास्थिराः॥ हिगुसौवर्चलाजाजीयवानीधान्यचित्रकाः ॥ २५॥ झूठ-मिरच-पीपल-कुटकी-त्रिफला-सहोजना-वायविडंग-अतीश-शालपर्णी--हींग सौवर्चल अर्थात् कालाके समान नमक-जीरा-अजमान–धनियां चीता ॥ २५ ॥
निशे बृहत्यौ हपुषा पाठामूलञ्च केम्बुकात् ॥
एषां चूर्णं मधुघृततैलञ्च सदृशांशकम् ॥ २६ ॥ हलदी-दारुहलदी-दोनोंकटहली-हाऊबेर-पाठा-सुपारी वृक्षकी जड-इन्होंका चूर्ण और शहद-वृत-तेल ये सब समानभाग ले ॥ २६ ॥
सक्तुभिः षोडशगुणैर्युक्तं पीतं निहन्ति तत् ॥
अतिस्थौल्यादिकान्सर्वान् रोगानन्यांश्च तद्विधान् ॥ २७ ॥ • पीछे सोलहगुनें सत्तुओंकरके संयुक्तकर इसे पान करै तो अतिस्थूलपनाआदि रोग और ऐसेही अन्यरोगोंका नाश हो जाता है ॥ २७ ॥
हृद्रोगकामलाश्वित्रश्वासकासगलग्रहान् ॥
बुद्धिमेधास्मृतिकरं सन्नस्याग्नेश्च दीपनम् ॥ २८॥ और हृद्रोग-कामला-श्वित्र ( कुष्ट )-श्वास-खांसी-गलग्रह-इनरोगोंको नाशता है, और बुद्धि मेधा-स्मृतिको करता है और मंदहुआ अग्निको दीपन करता है ॥ २८ ॥
अतिकाय भ्रमः कासस्तृष्णाधिक्यमरोचकः ॥ स्नेहाग्निनिद्रादृक्श्रोत्रशुक्रौजाक्षुत्स्वरक्षयः ॥ २९ ॥ अतिकशपना-धम-खांसी-तृषाकी अधिकता-अरोचक-स्नेहक्षय-अग्निक्षय-निद्राक्षय-दृष्टिक्षय-कर्णेन्द्रियक्षय-वीर्यक्षय-बलक्षय-क्षुधाक्षय-स्वरक्षय ॥ २९ ॥
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