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(१३८) - अाङ्गहदये
आमेन तेन सम्पृक्ता दोषा दृष्याश्च दूषिताः॥
सामा इत्युपदिश्यन्ते ये च रोगास्तदुद्भवाः ॥ २७ ॥ तिस आम करके संयुक्त हुये और दूषित हुये दोष और दृष्य और तिन्होंसे उपजे ज्वरआदि रोग ये साम कहाते हैं ॥ २७ ॥ - सर्वदेहप्रविसृतान्सामान्दोषान्न निर्हरेत् ॥
लीनान्धातुष्वनुक्लिष्टान्फलादामाद्रसानिव ॥ २८॥ सब देहमें प्रसृत हुये और रसआदि धातुओंमें लीन और अपने स्थानसे न चलायमान हुए और साम अर्थात् आमकरके सहित दोषोंको वैद्य नहीं निकास, जैसे कचे फलसे रसको ॥ २८ ॥
आश्रयस्य हि नाशाय ते स्युर्दुर्निहरत्वतः ॥
पाचनैर्दीपनैः स्नेहैस्तान्स्वेदैश्च परिष्कृतान् ॥ २९ ॥ बुरी तरह निकसेहुये मे दोष शरीरका नाश करदेते हैं इसवास्ते प्रथम पाचन-दीपन-स्नेहस्वेद इन्होंकरके परिष्कृत कियेहुये तिन दोषोंको ॥ २९ ॥
शोधयेच्छोधनैः काले यथासन्नं यथावलम् ॥
हन्त्याशु युक्तं वस्त्रेण द्रव्यमामाशयान्मलान्॥३०॥ समयपै बलके अनुसार वमनविरेचनआदि शोधनोंकरके शोधितकरावै और मुखकरके पान किया द्रव्य शीघ्र आमाशयसे मलोंको हरता है ॥ ३० ॥
घ्राणेन चोर्ध्वजत्रत्थान पक्काधानाद्देन च ॥ . उत्कृिष्टानध ऊर्ध्वं वा न चामान् वहतः स्वयम् ॥ ३१ ॥ नासिकाकरके पान किया द्रव्य ऊरलेजोतोंसे उपजे मलोंको हरता है और गुदाके द्वारा युक्त किया द्रव्य पक्वाशयगतमलोंको हरता है और नाचेको तथा ऊपरको उत्क्लेशित हुये और आपही बहतेहुये आमरूप ॥ ३१ ॥ . धारयेदौषधैर्दोषान् विधृतास्ते हि रोगदाः ॥
प्रवृत्तान् प्रागतो दोषानुपेक्षेत हिताशिनः ॥ ३२ ॥ दोषोंको स्तंभनरूप औषधोंकरके नहीं धारै, क्योंकि धारण किये आमदोष रोगोंको उपजात-- हैं इस हेतुसे हितभोजन करनेवाले मनुष्यके प्रारंभकालमें प्रवृत्त हुये दोषोंको स्तंभनद्रव्यकरके धारित नहीं करै ॥ ३२॥
विबद्धान् पाचनैस्तैस्तैः पाचयेन्निहरेत वा ॥
श्रावणे कार्तिके चैत्रे मासि साधारणे क्रमात् ॥ ३३ ॥ • विबद्ध अर्थात् कछुक प्रवृत्त हुये आमदोषोंको तिस तिस औषधोंकरके पकावै अथवा निकासै
और श्रावण-कार्तिक-चैत्र-इन महीनों में क्रमसे ॥ ३३ ॥
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