________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(११६)
अष्टाङ्गहृदयेजब वायुकी क्षीणता होवे तब अंगकी शिथिलता-भाषित--चेष्टित--संज्ञा--मोह--कफकी वृद्धि कहे रोगोंका संभव ऐसे लक्षण जानों ॥ १५ ॥
पित्ते मन्दोऽनलः शीतं प्रभाहानिः कफे भ्रमः॥
श्लेष्माशयानां शून्यत्वं हृद्रवश्लथसन्धिताः ॥ १६ ॥ पित्तके क्षयमें मंदाग्नि-कांतिकी हानि ये उपजते हैं, ऐसे लक्षण जानों, कफकी क्षीणतामें भ्रमकफके आशयोंकी शून्यता हृदयका गिरना-संधियों का ढीलापन ये उपजते हैं ॥ १६ ॥
रसे रौक्ष्यं श्रमः शोषो ग्लानिः शब्दासहिष्णुता ॥
रक्ते म्लशिशिरप्रीतिशिराशैथिल्यरूक्षताः॥१७॥ रसके क्षयमें रूखापन श्रम-झोष-ग्लानि शब्दको नहीं सहना ये उपजते हैं, रक्तकी क्षीणतामें अम्ल और शीतल पदार्थमें रुचि-नाडियोंकी शिथिलता-रूखापन उपजते है ॥ १७ ॥
मांस क्षग्लानिगण्डस्फिक्शुष्कतासन्धिवेदनाः॥
मेदसि स्वपनं कट्याः प्लीह्नो वृद्धिः कृशाङ्गताः ॥ १८॥ मांसकी क्षीणतामें कमेंद्रियोंमें ग्लानि,कपोल और फीचस्थानमें सूखापन--संधियोंमें पीडा ये उपजते हैं, मेदकी क्षीणतामें कटिका शयन, प्लीहा अर्थात् तिल्लीको वृद्धि अंगोंकी कृशता होतीहै १८
अस्थ्न्यस्थितोदः शदनं दन्तकेशनखादिषु ॥
अस्थ्ना मजनि सौषियं भ्रमस्तिमिरदर्शनम् ॥ १९॥ हड्डियोंकी क्षीणतामें हड्डिगत चभका-और दंत-केश-नख इन आदियोंका पात हो जाता है मज्जाकी क्षीणतामें सौपिर्य रोग भ्रम--अंधेराका देखना ये उपजते है ॥ १९ ॥
शुक्रे चिरात्प्रसिच्येत शुक्र शोणितमेव वा ॥
तोदोऽत्यर्थं वृषणयोर्मेद्रं धूमायतीव च ॥ २० ॥ वीर्यकी क्षीणतामें वीर्य अथवा रक्त चिरकालमें झिरता है और दोनों पोतोंमें अति झूलरूप चभका और धूमके समान आकृतिबाला लिंग हो जाता है ॥ २० ॥
पुरीषे वायुरन्त्राणि सशब्दो वेष्टयन्निव ॥
कुक्षौ भ्रमति यात्यूर्व हृत्पावें पीडयन् भृशम्॥ २१॥ विष्टाकी क्षीणतामें शब्दके सहित और आंतोंको वेष्टित करताहुवाकी तरह वायु कुक्षिमें भ्रमतः है, हृदय और पसलीको पीडित करके शरीरमें ऊपरको गमन करता है ॥ २१ ॥
मूत्रेऽल्पं मूत्रयेत् कृच्छाद्विवर्णं सास्रमेव वा॥ स्वेदे रोमच्युतिः स्तब्धरोमता स्फुटनं त्वचः ॥२२॥
For Private and Personal Use Only