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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (९९) वृत-आकाशका पानी-दूध-शहद-अनार-सेंधानमक इन्होंको सेवता रहै और नेत्रोंको बल. 'केअर्थ रात्रिमें घृत और शहदके संग त्रिफलाको सेवता रहै ॥ ४३ ॥
स्वास्थ्यानुवृत्तिकृयच रोगोच्छेदकरं च यत्॥
बिसेक्षुमोचचोचाम्रमोदकोत्कारिकादिकम् ॥ ४४ ॥ जो स्वस्थपनेकी इच्छावाला हो और जो रोगोंको छेदन करनेवाला हो और कमलकंद-ईखकेलेकी घड-नारियलका फल-आंब-उड्डू-लपसी-भारी-चिकना-स्वादु-मंद स्थिर आदि द्रव्योंको-॥ ४४ ॥
अद्याद्रव्यं गुरु स्निग्धं स्वादु मन्दं स्थिरं पुरः॥
विपरीतमतश्चान्ते मध्येऽम्लवणोत्कटम् ॥४५॥ भोजनसे पहिले खावै, और इन पूर्वोक्त द्रव्योंसे विपरीत अर्थात् हलके रूखे-तीक्ष्ण कटुद्रव्योंको भोजनके अंतमें सेवै, और खट्टे-लवण-उत्कटद्रव्योंको भोजनके मध्यमें सेवै ॥ ४५ ॥
अन्नेन कुक्षेावंशौ पानेनैकं प्रपूरयेत् ॥
आश्रयं पवनादीनां चतुर्थमवशेषयेत् ॥ ४६॥ कुक्षिके दोभागोंको अन्नसे पूरित करै, और तीसरे भागको पानीसे पूरित करे और पवन आदिके आश्रयवाले चौथे भागको शेष रक्खै ॥ ४६ ॥
अनुपानं हिमं वारि यवगोधूमयोर्हितम् ॥
दनि मये विषे क्षौद्रे कोष्णं पिष्टमयेषु तु ॥४७॥ जब और गेहूंमें शीतल पानीका अनुपानहै दही-मदिरा-विष-शहद-इन्होंमेंभी शीतल पानीका अनुपान है और पिष्टमयपदार्थोपै कछुक गरम पानीका अनुपानहै ॥ ४७ ॥
शाकमुद्गादिविकृतौ मस्तुतकाम्लकाञ्जिकम् ॥
सुरा कृशानां पुष्ट्यर्थं स्थूलानां तु मधूदकम् ॥ ४८॥ शाक-मूंग आदिके पदार्थमें दहीका पानी-खट्टा रस-कांजी अनुपानहै, कृश अर्थात् दुबले मनुष्योंकी पुष्टिके अर्थ मदिरा हित है और स्थूल मनुष्योंको कृशकरनेके अर्थ शहदमें मिला पानी हित है ॥४८॥
शोषे मांसरसो मयं मांसे स्वल्पे च पावके ॥
व्याध्यौषधाध्वभाष्यस्त्रीलंघनातपकर्मभिः॥४९॥ शोषरोगमें मांसका रस हित है, और मांसके भोजनपै मदिराका अनुपान है, और मंदाग्नि रोगमेंभी मदिराका अनुपानहै, और रोगादिसे तथा औषध-मार्गगमन-भाषण स्त्रीसंग-लंबनघाम-क्रिया ॥४९॥
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