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(१०४६)
अष्टाङ्गहृदयेतिस कारणसे चारों पैरोंसे संपन्न और अच्छीतरह देखकर योजित किये चिकित्सितमें रोगके नाशके प्रति संशयको मत करो ॥ ७२ ॥
एतद्धिमृत्युपाशानामकांडे छेदनं दृढम् ॥ ___ रोगोत्रासितभीतानां रक्षासूत्रमसूत्रकम् ॥७३॥
अकालमें जो मृत्युके पाशहैं यह चिकित्साके दृढ छेदनहैं और रोगके उद्वेगसे भीत हुये मनुष्योंको सूतसे वर्जितहुआ यह चिकित्सा अर्थात् औषध रक्षासूत्रहै ।। ७३ ॥ .. एतत्तदमृतं साक्षाजगत्यायासवर्जितम् ॥
याति हालाहलत्वं च सद्यो दुर्भाजनस्थितम् ॥ ७४ ॥ जगत्में विषसे वर्जितहुआ अमृत साक्षात् यहीहै, परंतु दुष्टपात्रमें स्थितहुआ येही औषध विषम भावको शीघ्र प्राप्त होजाताहै ॥ ७४ ॥
अज्ञातशास्त्रसद्भावाञ्छास्त्रमात्रपरायणान् ॥
त्यजेदूराद्भिषक्पाशान्पाशान्वैवस्वतानिव ॥ ७५॥ ( अब दुष्टपात्रोंको दिखातेहैं ) नहीं जानाहै शास्त्रसद्भाव अर्थात् परमार्थ जिन्होंने ऐसे और वैद्यशास्त्रके पाठमात्रमें तत्पर कुत्सितवैद्यकू दूरसे त्यागै, जैसे धर्मराजके पाशोंको लागते हैं॥७॥
भिषजां साधुवृत्तानां भद्रमागमशालिनाम् ॥
अभ्यस्तकर्मणां भद्रं भद्रं भद्राभिलाषिणाम् ॥७६ ॥ ग्रंथसे प्रसंशा करनेको योग्यहै जिनका शील, ऐसे और श्रेष्ठआचरणवाले वैद्योंको सदाही मंगल है, और चिकित्साको करनेमें अत्यंत अभ्यास करनेवाले वैद्योंको मंगलहै, और पुत्र मित्र आदिरूपसे कल्याणकी इच्छा करनेवाले वैद्योंको सदाही मंगल है ।। ७६ ॥
इति तंत्रगुणैर्युक्तं तंत्रदोषविवर्जितम् ॥ चिकित्साशास्त्रमखिलं व्यापठ्य परितः स्थितम् ॥७॥ विपुलामलविज्ञानमहामुनिमतानुगम् ॥ महासागरगंभीरसंग्रहार्थोपलक्षणम् ॥७॥ अष्टांगवैद्यकमहोदधिमंथनेन. योष्टांगसंग्रहमहामृतराशिरातः ॥ तस्मादनल्पफलमल्पसमुद्यमानं प्रीत्यर्थमेतदुदितं पृथगेव तंत्रम् ॥७९॥इदमागमसिद्धत्वात्प्रत्यक्षफलदर्शनात्॥ मंत्रवत्संप्रयोक्तव्यं न मीमांस्यं कथंचन ॥ ८ ॥ तंत्रोंके गुणोंसे युक्त और तंत्रोंके दोषोंसे वर्जित ब्रह्मसंहिता आदि ग्रंथोंको अच्छीतरह पठिन करके सब ओरसे स्थित ।। ७७ ।। विपुल तथा अमल विज्ञानवाले आत्रेयमुनिके मतके अनुगत
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