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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१०४५) जिसकारणसे सब रोग अर्थात् असाध्य रोग उपायकी अपेक्षा नहीं करतेहैं और उपायसाध्य रोहिणीआदि रोग चिकित्साके विना नहीं सिद्ध होतेहैं इसवास्ते जो अहेतुहै वह हेतुमान नहीं होसक्ता, अर्थात् अयुक्ति युक्ति नहीं होसक्ती यह हेतुवाद है ॥ १५ ॥
अप्येवोपाययुक्तस्य धीमतो जातुचिस्क्रियां ॥
न सिध्यदैववैगुण्यान्न त्वियं षोडशात्मिका ॥६६॥ उपायको करनेवाले बुद्धिमान् मनुष्यके दैवके अपराधसे कदाचित् यह षोडशात्मिका क्रिया नहीं सिद्ध होतीहै, तौभी जो यहां उपाय है वह अनुपाय नहींहै ॥ ६६ ॥
कस्यासिद्धोनितोयादिः स्वेदस्तंभादिकर्मणि ॥ न प्रीणनं कर्शनं वा कस्य क्षीरगवेधुकम् ॥ ६७ ॥ कस्य माषात्मगुप्तादौ वृष्यत्वे नास्ति निश्चयः॥ विण्मूत्रकरणाक्षेपौ कस्य संशयितौ यवे ॥ ६८॥ विष कस्य जरां याति मंत्रतंत्रविवर्जितम् ॥
कः प्राप्तः कल्पतां पथ्यादृते रोहिणिकादिषु ॥६९॥ किस मनुष्यके स्वेद कर्ममें अग्नि नहीं सिद्धहै, और किस मनुष्यके स्तंभआदि कर्ममें पानी नहीं सिद्धहै और किस मनुष्यको दूध पुष्ट नहीं करता और किस मनुष्यको गवेडु कृश नहीं करता अर्थात् ये सबोंको यथार्थ करतेहैं ॥ ६७ ॥ और किस मनुष्यके उरद और कौंचके बीजोंमें वीर्यको पुष्ट करनेके अर्थ निश्चय नहींहै, और किस मनुष्यके जवमें विष्ठा और मूत्रकी उत्पत्ति और इंद्रियोंके आक्षेपमें संशयहै ॥ ६८ ।। मंत्र और तंत्रसे वर्जितहुआ विष किसका जीर्ण होसकताहै और रोहिणीआदि रोगोंमें पथ्यके विना कौन कल्पभावको प्राप्तहुआहै ॥ १९॥
अपि चाकालमरणं सर्वसिद्धांतनिश्चितम् ॥
महतापि प्रयत्नेन वार्यतां कथमन्यथा ॥ ७॥ और सब सिद्धान्तों करके निश्चयहुये अकालमरणको चिकित्सा शास्त्रके विना किस बडे यत्नसे निवारित करै ॥ ७० ॥
चंदनाद्यपिदाहादौ रूढमागमपूर्वकम् ॥
शास्त्रादेव गतं सिद्धिं ज्वरे लंघनबृंहणम् ॥ ७१ ॥ • दाह आदि रोगोंमें शास्त्रके द्वाराही चंदन आदि प्रयुक्त कियाजाताहै और उवरमें लंघन और बृंहण शास्त्रसेही सिद्धिको प्राप्तहुयेहैं ।। ७१ ॥ .
चतुष्पाद्गुणसंपन्ने सम्यगालोच्य योजिते ॥ मा कृथा व्याधिनिर्घातं विचिकित्सां चिकित्सिते ॥७२॥
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