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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
तुलाद्वै शर्कराचूर्णात्प्रस्थार्द्धं नवसर्पिषः ॥ २२ ॥ सोऽक्षमात्रमतः खादेद्यस्य रामाशतं गृहे ॥
( १०३९ )
विदारीकंद पीपल चावल चिरौजी तालमखाना इन्होंका चूर्ण ॥ २१ ॥ और कौंचकी जड शहद ये सब सोलह तोले और खांड २०० तोले और नवीन वृत ३२ तोले ॥ २२ ॥ जिसके घर में १०० स्त्रियें होवें वह एक तोला भर इस औषधको खावै ॥
सात्मगुप्ताफलान्क्षीरे गोधूमान्साधितान्हिमान् ॥ २३॥ मापान्वासघृतक्षौद्राखादन्यृष्टिपयोनपः ॥
जागर्ति रात्रिं सकलामखिन्नः खेदयेत्त्रियः ॥ २४ ॥
और दूध में कौंच के बीजों से युक्त किये गेहूँओं को साधितकर अथवा शीतलरूप || २शाउडदोंको सावितकर वृत और शहद से मिलाके खाताहुआ और प्रथम व्याई हुई गाय के दूधका अनुपान करताहुआ सकल रात्रिभर जागता है और आप नहीं खेदित होता हुआ स्त्रियोंको जीतता है ॥२४॥ वस्तांसिद्धे पयसि भावितानसकृत्तिलान् ॥
यः
खादेत्ससितान्गच्छेत्सस्त्रीशतमपूर्ववत् ॥ २५ ॥
बकरके आंडोंमें सिद्धकिये बहुतवार दूधमें वारंवार भावितकरै तिलोंमें मिसरी मिला जो खावै यह सौ स्त्रियों से अपूर्व की तरह भोग करता है ।। २५॥
चूर्ण विदार्या बहुशः स्वरसेनैव भावितम् ॥
क्षौद्रसर्पिर्युतं ली। प्रमदाशतमृच्छति ॥ २६ ॥
विदारीकंदके स्वरसमें भाविताकये विदारीकंदके चूर्ण को शहद और तसे संयुक्तकर चाटने से १०० स्त्रियों से भोग करता है || २६ ॥
कृष्णाधात्रीफलरजः स्वरसेन सुभावितम् ॥ शर्करामधुसर्पिर्भिदा योऽनुपयः पिबेत् ॥ २७ ॥ स नरोऽशीतिवर्षोऽपि युवेव परिहृष्यति ॥
आमलेके स्वरसमें भावितकिये पीपल और आमले के फलके चूर्णको खांड शहद घृतसे मिला चाटकर जो दूधको पीवै ॥ २७ ॥ वह ८० वर्षका भी जवानकी समान होजाता है | कर्षं मधुकचूर्णस्य घृतक्षौद्रसमन्वितम् ॥ २८ ॥ पयोsनुपानं यो लिह्यान्नित्यवेगः स ना भवेत् ॥
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और एकतोलेभर मुलहटीक चूर्णको घृत और शहद में मिला || २८ ॥ चाटे और दूधका अनुपान करै वह अप्रनष्ट वेगवाला पुरुष होजाता है ||
कुलीरशृंग्या यः कल्कमालोड्य पयसा पिवेत् ॥ २९ ॥ सिताघृत पयोन्नाशी स नारीषु वृषायते ॥