________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१०३७) धयं यशस्यमायुष्यं लोकद्वयरसायनम् ॥
अनुमोदामहे ब्रह्मचर्यमेकांतनिर्मलम् ॥४॥ धर्मसे संयुक्त यशसे संयुक्त और आयुमें हित इस लोकमें और परलोकमें रसायन अर्थात् सब कालमें उपकारक सब प्रकारसे निर्मल ब्रह्मचर्यका हम अनुमोदन करतेहैं अर्थात् ब्रह्मचर्य सबसे श्रेष्ठ तुष्टि पुष्टि देनेवालाहै ॥ ४ ॥
अल्पसत्त्वस्य तु केशैर्वाध्यमानस्य रागिणः ॥
शरीरक्षयरक्षार्थ वाजीकरणमुच्यते ॥५॥ अल्पसत्ववालेके क्लेशोंसे पीड्यमानके और रागवालेके शरीरके क्षयकी रक्षाके अर्थ वाजीकरण औषध कहाहै ॥ ५॥
कल्पस्योदग्रवयसो वाजीकरणसेविनः॥
सर्वेष्वृतुष्वहरहर्व्यवायो न निवार्यते ॥६॥ समर्थक और यौवन अवस्थावालेके और वाजीकरणको सेवनेवालेके सबऋतुओंमें रोजके रोज मैथुन नहीं निवारित किया जाताहै ॥ ६ ॥
अथ स्निग्धविशुद्धानां निरूहान्सानुवासनान॥धृततैलरसक्षीरशर्कराक्षौद्रसंयुतान् ॥७॥ योगविद्योजयेत्पूर्व क्षीरमांसरसाशिनम्॥ ततो वाजीकरान्योगाच्छुक्रापत्यविवर्द्धनान् ॥८॥ स्निग्ध और शुद्धको वृत तेल मांसका रस दूध खांड शहद इन्होंसे संयुक्तकिये निरूह और अनुवासनके ।।७॥ योगको जाननेवाला वैद्य दूध और मांसके रसको खानेवालेके अर्थ पहिले प्रयुक्तकरे, पीछे वीर्य और संतानको बढानेवाले वाजीकरणसंज्ञक योगोंको प्रयुक्तकरै ।। ८॥
अच्छायः पूतिकुसुमः फलेन रहितो द्रुमः॥
यथैकश्चैकशाखश्च निरपत्यस्तथा नरः॥९॥ छायासे बर्जित और दुर्गधितफूलोंवाला और फूलोंसे वर्जित एकशाखावाला जैसा वृक्ष होताहै तैसा संतानके विना पुरुष कहाहै ॥ ९॥
स्खलगमनमव्यक्तवचनं धूलिधूसरम् ॥ अपिलालाविलमुखं हृदयाह्लादकारकम् ॥१०॥ अपत्यं तुल्यता केन दर्शनस्पर्शनादिषु ॥
किं पुनर्यद्यशोधर्ममानश्रीकुलवर्द्धनम् ॥११॥ स्खलितगमनवाले अव्यक्तवचनवाले धूलिसे धूसर रालोंसे आविलरूप मुखवाले संतान हृदयमें आनंदको करनेवाले होतेहैं ॥१०॥ इससे संतानकी तुल्यता दर्शन स्पर्शन आदिकोंमें किसपदार्थके संग होसकती है और फिर यश धर्म मान शोभा कुलको बढानेवाले संतानकी कौन कथाहै ॥११॥
For Private and Personal Use Only