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(१०३६)
अष्टाङ्गहृदयेसत्यबोलनेवाला और क्रोधसे वर्जित और योगके गुणवाली इन्द्रियोंवाला शांत और श्रेष्ठ वृत्तिमें स्थित ऐसे मनुष्यको नित्य रसायनवाला जानों ॥ १८० ॥
गुणैरेभिः समुदितः सेवते यो रसायनम् ॥
निवृत्तात्मा संदीर्घायुः परत्रहे च मोदते ॥८॥ इन गुणोंसे संयुक्तहुआ मनुष्यभी जो रसायनको सेवै, वह निवृत्त चित्तवाला दीर्घ आयु इस लोकमें होके पीछे परलोकमें आनंदित होताहै ॥ ८१ ॥
शास्त्रानुसारिणी चर्या चित्तज्ञाः पार्श्ववर्तिनः॥
बुद्धिरस्खलितार्थेषु परिपूर्ण रसायनम् ॥ ८२ ॥ शास्त्रके अनुसारवाली चर्या और चित्तको जाननेवाले पार्श्वमें बैठनेवाले और प्रयोजनमें अस्खलितहुई बुद्धि होवे तो रसायन परिपूर्णहुआ जाने ॥ ८२॥
इति वेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसहिताभाषाटीकायामुत्तरस्थाने एकोनचत्वारिंशोऽध्यायः ॥ ३९ ॥
समाप्तं रसायनतंत्रम् चत्वारिंशोऽध्यायः।
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अथातो वाजीकरणाध्यायं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर वाजीकरणनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे।
वाजीकरणमन्विच्छेत्सततं विषयी पुमान् ॥ तुष्टिः पुष्टिरपत्यं च गुणवत्तत्र संश्रितम् ॥१॥
अपत्यसंतानकरं यत्सद्यः संप्रहर्षणम् ॥ निरंतर विषयवाला पुरुष वाजीकरण औषधकी इच्छाकरै तिस वाजीकरणमें तुष्टेि युष्टि संतान संश्रितहैं॥१॥ अपत्यरूप संतानको करनेवाला और तत्काल आनंदकरनेवाला वाजीकरण औषधहै ।।
वाज वाऽतिबलो येन यात्यप्रतिहतोंगनाः ॥२॥ भवत्यतिप्रियः स्त्रीणां येन येनोपचीयते ॥
तद्वाजीकरणं तद्धि देहस्योर्जस्वरंपरम् ॥३॥ और जिससे घोडेकी तरह अतिबलवाला और अप्रतिहत सामर्थ्यवाला मनुष्य होक जवान स्त्रियोंको भोगताहै ॥ २॥ और जिससे स्त्रियोंको अत्यंत प्रिय होताहै, और जिससे वृद्धिको प्राप्त होताहै वह वाजीकरणहै वह देहके पराक्रमको करनेवाला अतिशय है ॥ ३॥
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