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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०२०) अष्टाङ्गहृदयेतद्वद्विदाय॑तिबलाबलामधुकवायसीः॥ श्रेयसी श्रेयसी युक्तापथ्याधात्रीस्थिरास्मृताः ॥ ६०॥ मण्डूकीशंखकुसुमावाजिगंधाशतावरीः ॥ उपयुञ्जीत मेधावी वयःस्थैर्यवलप्रदाः॥६१॥ तैसेही बिदारीकंद गंगेरन खरेहटी मुलहटी मालकांगनी पीपल हरडै पाठा आँवला शालपणी गिलोय ॥ ६० ॥ ब्राह्मी शंखपुष्पी आसगंध शतावरी अवस्था स्थिरता बल इन्होंको देनेवाले इन औषधोंको बुद्धिमान् प्रयुक्तकरै ॥ ६१॥ यथास्वं चित्रकः पुष्पैर्जेयः पीतसितासितैः। यथोत्तरं सगुणवान्विधिना च रसायनम् ॥ ६२॥ यथायोग्य पीतं श्वेत कृष्ण फूलोंसे चीता जानना योग्यहै और उत्तरोत्तर क्रमसे गुणवान् जानना योग्यहै, और विधिसे प्रयुक्तकिया रसायन होताहै ॥ ६२॥ छायाशुष्कं ततो मूलं मासं चूर्णीकृतं लिहन् । सर्पिषा मधुसर्पिभ्यां पिबन्वा प्रयसा यतिः॥६३॥ अम्भसा वा हितानाशी शतं जीवति नीरुजः॥ मेधावी बलवान्कान्तो वपुष्मान्दीप्तपावकः॥६४॥ छायामें सुखायेहुये एक महीनातक चीतेकी जडका चूरन बना घृतके संग अथवा शहद और घृतके संग चाटै, अथवा ब्रह्मचारी मनुष्य दूधके संग पीवै ॥६३ ॥ अथवा हित अन्नको खानेवाला पानीके संग पवि, इससे रोगोंसे वर्जित और धारणावाला बलवाला प्रकाशित सुंदर शरीरवाला दीप्तहुये जठराग्निवाला मनुष्यहोके १०० वर्षतक जीवताहै ॥ ६४ ॥ तैलेन लीढो मासेन वातान्हन्ति सुदुस्तरान् ॥ मूत्रेण श्वित्रकुष्ठानि पीतस्तक्रेण पायुजान् ॥६५॥ और तेलके संग एक महीनातक चाटाहुआ यह चीता दुस्तररूप वातरोगोंको नाशताहै. और गोमूत्रके संग खायाहुवा श्वित्रकुष्ठोंको नाशताहै, और तक्रके संग पानकिया यह चीता गुदाके रोगोंको जीतताहै ॥६५॥ भल्लातकानि पुष्टानि धान्यराशौ निधापयेत्॥ग्रीष्मे संगृह्य हेमन्ते स्वादुस्निग्धहिमैर्वपुः ॥६६॥ संस्कृत्य तान्यष्टगुणे सलिलेऽष्टौ विपाचयेत् ॥ अष्टांशशिष्टं तत्वाथं सक्षीरं शीतलं पिबेत् ॥ ६७॥ वर्द्धयेत्प्रत्यहं चानु तत्रैकैकमरुष्करम् ॥सप्तरात्र त्रयं यावत्रीणि त्रीणि ततः परम् ॥६८॥आचत्वारिंशतस्ता For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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