SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1082
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमतम् । (१०१९) और घृत ४ तोले, इन सबोंको एक जगह मिलाके युक्तकरै, और जीर्णहोजानेपे घृत और शहदसे संयुक्तकिये भोजनको खावै, इस औषधको एक वर्षतक अभ्यासकरै तौ अधिक बुद्धि स्मृति और धारणावाला ॥ ११ ॥ और बुढापा व्यावि तंद्रा आलस्य परिश्रम ग्लानिको उल्लंधित करनेवाला, आर शोभा तेज- कांति दीप्तिवाला होकर वह पूरे सौ १०० वर्षतक जीवताहै ॥ १२ ॥ और विशेष करके कुष्ठ किलास गुल्म विष ज्वर उन्माद गरोदर और अथर्ववेदके मंत्रोंसे करीहुई कृत्या और अत्यंत बलवाले वायु ये इससे शांत होजातेहैं ॥ ५३॥ शरन्मुखे नागबलां पुष्ययोगे समुद्धरेत् ॥ अक्षमात्रं ततो मूलाचूर्णितात्पयसा पिबेत् ॥ ५४॥ लिह्यान्मधुघृताभ्यां वा क्षीरवृत्तिरनन्नभुक्॥ एवं वर्षप्रयोगेण जीवेद्वर्षशतं बली ॥ ५५ ॥ शरदऋतुमें पुष्य नक्षत्र होवे तब बडी खरेहटीको उखाडै, तिसकी जडके १ तोला चूर्णको दूधके संग पीवै ॥ ५४ ॥ अथवा घृत और शहदसे चाटै और दूधको पीतारहै और अन्नको खावै नहीं, ऐसे एकवर्षका प्रयोगकरके बलवाला १०० वर्षतक जीवताहै ॥ ५५ ॥ फलोन्मुखो गोक्षुरकः समूलश्छायाविशुष्कः सुविचूर्णितांगः॥ सुभावितःस्वेन रसेन तस्मान्मात्रां परां प्रासृतिकिं पिबेद्यः॥५६॥ क्षीरेण तेनैव च शालिमश्नञ्जीर्णे भवेत्सद्वितुलोपयोगात्॥ शक्तःसुरूपःसुभगः शतायुः कामी ककुद्मानिव गोकुलस्थः ॥५७॥ फलके अभिमुख और जडसे संयुक्त और छायामें विशेषकरके सुखायेहुए अच्छीतरह चूर्णित किये, अपनही रससे भावितकिये गोखरूकी आठ तोले मात्राको जो पीवै ॥ १६ ॥ दूधके संग और दहीके साथ शालीचावलोंका भोजन करै, ऐसे ८०० तोलेका सेवनेस समर्थ सुंदर रूपवाला और सुंदर ऐश्वर्यवाला और १०० वर्षकी आयुवाला और कामी मनुष्य गायोंके समूहमें स्थितहुये सांडकी तरह होजाताहै ॥ १७ ॥ वाराही कन्दमाद्रं क्षीरेण क्षीरपः पिबेत् ॥ मासं निरन्नो मासं च क्षीरान्नादी जरां जयेत् ॥ ५८॥ अत्यंत गीलेरूप बाराहीकंदको दूधके संग पीवै, और जीर्णहोने दूधकाही भोजन करतारहै और अन्नको खावै नहीं और दूसरे महीनेमें दूध और अन्नको खाताहुआ बुढापेको जीतता है।।५८॥ तत्कन्दश्लक्ष्णचूर्णं वा स्वरसेन सुभावितम् ॥ घृतक्षौद्रप्लुतं लिह्यात्तत्पक्कं वा घृतं पिबेत् ॥ ५९॥ अथवा विदारेहीकेकंदके मिहीन चूर्णको विदारकेही स्वरसमें भावितकर घृत और शहदसे संयुक्तकर चाटै अथवा विदारकी जडमें पकायेहुये घृतको पावै ॥ ५९॥ , For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy