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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१०१३) वाक्सिद्धिं वृषतां कान्तिमवाप्नोति रसायनात् ॥ लाभोपायो हि शस्तानां रसादीनां रसायनम् ॥२॥ . दीर्घआयु स्मृति बुद्धि आरोग्य तरुणअवस्था कांति वर्ण स्वर उदारपना देह इंद्रियबलका उदय ॥१॥ वाणीकी सिद्धि वीर्यकी पुष्टाई कांति इन्होंको रसायनसे मनुष्य प्राप्त होताहै और जिससे श्रेष्टरूप रस आदिकोंके लाभका उपाय होताहै, इसवास्ते इसे रसायन कहा जाताहै ॥२॥ पूर्वे वयसि मध्ये वा तत्प्रयोज्यं जितात्मनः ॥ स्निग्धस्य नुतरक्तस्य विशुद्धस्य च सर्वथा ॥३॥ पहिली अवस्थामें जितात्माके प्रयुक्त करना योग्यहै और स्निग्ध और रक्तको झिराये हुये विशेषकरके शुद्ध मनुष्यके मध्य अवस्थामें भी रसायन प्रयुक्त करना योग्यहै ।। ३ ॥ ' अविशुद्धे शरीरे हि युक्तो रासायनो विधिः॥ वाजीकरो वा मलिने वस्त्रे रंग इवाफलः॥४॥ नहीं शुद्धहुये शरिमें युक्तकिया रसायन विधि अथवा वाजीकरण विधि निष्कल है जैसे मलिन वस्त्रमें रंग निष्फल होताहै ॥ ४ ॥ " रसायनानां द्विविधं प्रयोगमृषयो विदुः ॥ कुटीप्रावेशिकं मुख्यं वातातपिकमन्यथा ॥५॥ रसायनोंके प्रयोगको ऋषियोंने दोप्रकारसे कहाहै तिन्होंमें कुटिपावेशिक मुख्यहै और वातातपिक अमुख्यहै ॥ ५॥ निर्वाते निर्भये हर्ये प्राप्यौपकरणे पुरे॥ दिश्युदीच्यां शुभे देशे त्रिगर्भा सूक्ष्मलोचनाम् ॥६॥ धूमातपरजोव्यालस्त्रीमूर्खाद्यविलंधिताम् ॥ सजवैद्योपकरणां सुमृष्टां कारयेत्कुटीम् ॥७॥ वातसे वर्जित, भयसे रहित, धवलगृह, जहां जहां सब सामग्री प्राप्तहों ऐसे स्थानकी उत्तरदिशामें शुभ देश होवे तहां तीनगर्भोवाली और सूक्ष्म नेत्रोंवाली अर्थात् झिरोखोंवाली ॥ ६॥ और धूम घाम धूली सर्प आदि जीव स्त्री मूर्ख आदिकरके अविलंधित सावधान वैद्य और औषधोंकरके संयुक्त लेप आदिसे शुद्धहुई कुटीको बनावै ॥ ७॥ अथ पुण्येऽह्नि सम्पूज्य पूज्यांस्तांप्रविशेच्छुचिः॥तत्र संशोधनैःशुद्धः सुखी जातबलःपुनः॥८॥ ब्रह्मचारी धृतियुतःश्रद्दधानोजितेन्द्रियः॥दानशीलदयासत्यव्रतधर्मपरायणः॥९॥ देवतानुस्मृतौ युक्तो युक्तस्वप्नप्रजागरः ॥ प्रियौषधः पेशलवाप्रारभेत रसायनम् ॥ १०॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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