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(९७०)
अष्टाङ्गहृदयेकाश्मयंत्रिफलाद्राक्षाकासमर्दनिशाद्वयैः॥ गुडूचीसैर्यकाभीरुशुकनासापुनर्नवैः ॥२८॥ परूषकैश्च विपचेत्प्रस्थमक्षसमैघृतात् ॥
योनिवातविकारघ्नं तत्पीतं गर्भदं परम् ॥२९॥ कंभारीका फल, त्रिफला, दाख, कोंदी, हलदी, दारुहलदी, श्वेत, कुरंटा, नलिका नखी ।। ॥ २८ ।। फालसा ये सब एक एक तोलेभर ले, इन्होंके कल्कमें चौंसठ तोलेभर घृतको पकावे, यह घृत योनि और वातके विकारको नाशताहै और पान करनेसे गर्भको देताहै ॥ २९ ॥
वचोपकुञ्चिकाजाजीकृष्णावृषकसैन्धवम् ॥ अजमोदायवक्षारशर्कराचित्रकान्वितम् ॥ ३०॥ पिष्वा प्रसन्नयाऽऽलोड्य खादत्तघृतभर्जितम् ॥
योनिपार्तिहृद्रोगगुल्माशोंवनिवृत्तये ॥३१॥ कलौंजी जीरा पीपल वांसा सेंधानमक अजमोद जवाखार खांड चीता ॥ ३० ॥ इन्होंको प्रसन्नासंज्ञक मदिरामें आलोडितकर और घृतमें भून खावै, यह योनिरोग पशलीपीडा हृदोग गुल्मरोग अर्शरोग इन्होंकी निवृत्तिके अर्थ कहाहै ॥ ३१ ॥
वृषकं मातुलुंगस्यमूलानि मदयन्तिकाम् ॥
पिबेन्मयैः सलवणैस्तथा कृष्णोपकुञ्चिकैः ॥ ३२॥ वांसा विजोराकी जड रानमोगरी इन्होंको नमकसे संयुक्तकरी मदिराके संग पीवै तथा पीपल और कलौंजी और नमकसे संयुक्त करी मदिराके संग पावै ।। ३२ ॥
रास्नाश्वदंष्ट्रावृषकैः शृतं शूलहरम्पयः॥ रायशण गोखरू बांसा इन्होंसे पकाया दूध शूलको हरताहै ।।
गुडूचीत्रिफलादन्तीकाथैश्च परिषेचनम् ॥३३॥ भौर गिलोष त्रिफला जमालगोटेकी जड इन्होंके काथोंसे परिसेक यानिशूलमें हितहै ॥ ३३ ॥
नतवार्ताकिनीकुष्ठसैन्धवामरदारूभिः॥
तैलात्प्रसाधिताद्धार्यः पिचुर्योनीरुजापहः॥३४॥ अगर वार्ताकु कूट सेंधानमक देवदार इन्होंसे साधितकिये तेलसे भिगोयाहुआ रूईका फोहा योनिमें धारणकरना योग्यहै यह पीडाको हरताहै ॥ ३४ ॥
पित्तलानां तु योनीनां सेकाभ्यङ्गपिचुक्रियाः॥
शीताः पित्तजितः कार्याः स्नेहनार्थं घृतानि च ॥ ३५॥ पित्तकी अधिकतावाली योनियोंमें शीतलरूप सेक मालिश पिचुक्रिया अर्थात् रूईके फोहेका धारण ये सब पित्तको जीतनेवाली क्रिया करनी योग्यहै, और स्नेहन करनेके अर्थ घृतोंका देना हितहै ३६
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