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(९६६)
अष्टाङ्गहृदयेअसृग्दराशोंगुल्मादीनाबाधाश्चानिलादिभिः॥ ५२ ॥ ऐसे योनिके रोग कहे जिन्होंसे नारी वीर्यको न ग्रहण करतीहै तिससे गर्भको नहीं धारण करतीहै और अनेक प्रकारके दारुण रोगोंको प्राप्त होतीहै असृग्दर अर्थात् पैंरा रोग अर्श गुल्न आदिकोंको और वात पित्त कफसे पीडाविशेषोंको प्राप्त होतीहै ।। ५२ ॥ इति बेरीनिया सिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीका
यामुत्तरस्थाने त्रयस्त्रिंशोऽध्यायः ॥ ३३ ॥
चतुस्त्रिंशोऽध्यायः। अथातो गुह्यरोगप्रतिषेधमध्यायं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर गुह्यरोगप्रतिषेधनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे ॥
मदमध्ये शिरां विध्येदुपदंशे नवोत्थिते ॥ शीतां कुर्यात्क्रियां शुद्धिं विरेकेण विशेषतः॥१॥
तिलकल्कघृतक्षौद्रेर्लेपः पक्के तु पाटिते॥ नवीन उपजे उपदंशमें लिंगके मध्यकी सिराको वाँधै और शीतल क्रियाको करै और विशेष कारके जुलावके द्वारा शुद्धिको करै ।। १ ॥ पकेहुये और पाटितहये उपदंशमें तिलोंका कल्क घृत शहद इन्होंसे लेप करै ॥
जम्ब्वाम्रसुमनोनीपश्वेतकाम्बोजिकांकुरान् ॥२॥ शल्लकीबदरीबिल्वपलाशातिनिशोद्भवाः॥ त्वचः क्षीरिद्रुमाणां च त्रिफलां च जले पचेत् ॥३॥
स काथः क्षालनं तेन पक्कतैलं च रोपणम् ॥ और जामुन आम चमेली कदंब श्वेत चिरमटीके अंकुरोंको ॥ २॥ और सालकीवृक्ष बङवेरी बेलपत्र ढाक तिनिशकी छाल और दूधवाले वृक्षोंकी छाल और त्रिफला इन्होंको पानीमें पकावै॥३॥ यह क्वाथ उपदंशको धोवनेमें हितहै और इसी काथसे पकाया तेल रोपणहै ।।
तुत्थगैरिकलोधैलामनोह्वालरसाअनैः॥४॥ हरेणुपुष्पकासीससौराष्ट्रीलवणोत्तमैः॥
लेपः क्षौद्रयुतैः सूक्ष्मैरुपदंशत्रणापहः॥५॥ और नीलाथोथा गेरू लोध इलायची मनशिल हरताल रसोत ॥ ४ !! रेणुका नीलेवर्णवाला होराकसीस मुलतानीमाटी सेंधानमक इन्होंके सूक्ष्म चूर्णीको शहदमें मिला लेप किया उपदंशके धावोंको नाशताहै ॥ ५॥
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