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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
(९५७)
संयुक्त किया लेप ॥ २० ॥ अथवा बकरीके दूधमें पिसी हुई और शहद से संयुक्त संभलकी जडका लेप अथवा गायकी हड्डी मुसलीकी जड इन्होंमें घृत और शहद मिलाके किया हुआ लेप ॥ २१ ॥
जम्ब्वाम्रपल्लवा मस्तु हरिद्रे द्वे नवो गुडः 1
लेपः सवर्णकृत्पिष्टं स्वरसेन च तिन्दुकम् ॥ २२॥
जामनके पत्ते आनके पत्ते दहीका पानी हलदी दारूहल्दी नवनिगुड इन्होंका लेप अथवा स्वरसमें पिसेहुये तेंदुका लेप समानवर्णको करता है || २२ ॥
उत्पलपत्रं तगरं प्रियंगुकालीयकदम्बद रमजा ॥ इदमुद्वचनमास्यं करोति शतपत्रसङ्काशम् ॥ २३॥
नीले कमलके पत्ते तगर मालकांगनी दारूहल्दी कदंब बेरकी गुठली इन्होंका उबटना कमलके समान कांतिवाले मुखको करता है ॥ २३ ॥
एभिरेवौषधैः पिष्टैर्मुखाभ्यङ्गाय साधयेत् ॥
यथादोष का स्नेहान्मधुकक्काथसंयुतैः ॥ २४ ॥
इन्हीं औषधों के कल्कोंसे और मुलहटीका काथकरके दोष और ऋतुके अनुसार मुखकी मालिसके अर्थ स्नेहों को साधितकरै ॥ २४ ॥
यवान्सर्जरसं रोधमुशीरं चन्दनं मधु ॥
घृतं गुडं च गोमूत्रे पचेदादविलेपनात् ॥ २५ ॥ तद्भ्यङ्गान्निहन्त्याशु नीलिकाव्यङ्गदूषिकान् ॥ मुखं करोति पद्माभं पादौ पद्मदलोपमौ ॥ २६ ॥
यव राल लोध खश चंदन शहद घृत गुड• इन्होंको गोमूत्र में जबतक कडळीपै नहीं चिपकै तबकक पकावै ॥ २५ ॥ इसकी मालिशसे नीलिका व्यंग मूखदूषिका इन्होंको दूर करता है और कमलके समान मुखकरताहै और कमलके पत्ते के समान दोनों पैरों को करता है ॥ २६ ॥
कुंकुमोशीरकालीयलाक्षायष्ट्याह्वचन्दनम् ॥ न्यग्रोधपादास्तरुणान्पद्मकं पद्मकेसरम् ॥२७॥सनीलोत्पलमञ्जिष्ठं पालिकं सतिलाढके || पक्त्वा पादावशेषेण तेन पिष्टैश्च कार्षिकैः ॥ २८॥ लाक्षापत्तंगमंजिष्ठायष्टीमधुककुंकुमैः॥ अजाक्षीरद्विगुणितं तैलस्य कुडवं पचेत् ॥ २९ ॥ नीलिकापलितव्यङ्गवलीतिलक दृषिकान् ॥ हन्ति तन्नस्यमभ्यस्तं मुखोपचयवर्णकृत् ॥ ३० ॥
केशर दारूहल्दी दाख मुलहटी चंदन वडकी ताजी छाल कमल कमलकेशर ॥ २७ ॥ नीलाकमल मजीठ ये सब चार चार तोले और पानी २५६ तोले इन्होंको पकावै जब चौथाई भाग
शेषरहे तब पिसेहुये और एक एक तोले प्रमाणसे संयुक्त ॥ २८ ॥ लाख लालचंदन मजीठ मुलहटी
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