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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (९५३ ) शोकक्रोधादिकुपिताद्वातपित्तान्मुखे तनु॥ .
श्यामलं मण्डलं व्यंगं वादन्यत्र नीलिका ॥२८॥ शोक और क्रोध आदिसे कुपितहुये वातपित्तसे मुखपै सूक्ष्म और श्यामवर्ण और मंडलके आकार जो होवे तिसको व्यंगरोग कहतेहैं और मुखसे अन्यजगह यह रोग होवे तो नीलिकारोग कहाताहै ।। २८ ॥ .
परुषं परुषस्पर्श व्यंगं श्यावं च मारुतात्॥ पित्तात्ताम्रान्तमानीलं श्वेतान्तं कण्डुमत्कफात् ॥ २९॥
रक्ताद्रक्तान्तमातानं शोषं चिमचिमायते ॥ कठोर स्पर्शवाला और धूम्रवर्णवाला व्यंग रोग वायुसे उपजताहै और पित्तसे तांबेके रंग कछुक नीला व्यंग रोग उपजताहै, और कफसे श्वेत अंतवाला और खाजसे संयुक्त व्यंगरोग उपजताहै। ॥ २९ ॥ रक्तसे रक्तअंतवाला और कछुक तांबेके समान और शोषसे संयुक्त और चिमचिमाहट करनेवाला व्यंगरोग उपजताहै ॥
वायुनोदीरितः श्लेष्मा त्वचं प्राप्य विशुष्यति ॥ ३०॥ ततस्त्वग्जायते पाण्डुः क्रमेण च विचेतना ॥
अल्पकण्डरविक्लेदा सा प्रसुप्तिः प्रसुप्तितः॥ ३१ ॥ और वायुसे प्रेरितकिया कफ त्वचाको प्राप्त होके सूखजाताहै ॥ ३० ॥ पीछे पांडु और चेतनसे रहित और अल्पखाजवाली और क्लेदसे रहित त्वचा होजातीहै यह प्रसुतिरोग कहाहै यह प्रसुप्तिसे उपजताहै ॥ ३१ ॥
असम्यग्वमनोदीर्णपित्तश्लेष्मान्ननिग्रहैः॥ मण्डलान्यतिकण्डूनि रागवन्ति बहूनि च ॥३२॥
उत्कोठः सोऽनुबद्धस्तु कोठ इत्यभिधीयते ॥ वमनसे भली प्रकार प्रेरित न हुआ पित्त कफ और अन्नके निग्रहोंसे अति खाजबाले और रागवाले और बहुतसे मंडलोंको करतेहैं ॥ ३२ ॥ वह उत्कोठ रोग कहाताहै और यही अनुबद्ध हुआ कोठरोग कहाजाताहै ॥
प्रोक्ताः षट्त्रिंशदित्येते क्षुद्ररोगा विभागशः॥३३॥ इसप्रकार विभागसे ये ३६ क्षुद्ररोग कहे ॥ ३३ ॥ इति वेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषा
टीकायामुत्तरस्थाने एकत्रिंशोऽध्यायः ॥ ३१ ॥
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