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(३८)
अष्टाङ्गहृदये
तहां स्निग्ध गरम और अल्प भोजन देना हित है, नींदके रोकने से मोह शिरोगौरव नेत्रगौरव आलस्य जंभाई रोग उपजते हैं ॥ १३ ॥
अंगमर्दश्च तत्रेष्टः स्वप्नः संवाहनानि च ॥
कासस्य रोधात्तदृद्धिः श्वासारुचिहृदामयाः ॥ १४ ॥
तहां अंगका मर्दन शयन पैरोंका स्वल्प मर्दन सब हित है खांसीके रोकनेसे खांसीकी वृद्धि श्वास अरुचि हृद्रोग शोष हिचकी ये उपजते हैं ॥ १४ ॥
शोषो हिध्मा च कार्योऽत्र कासहा सुतरां विधिः ॥ गुल्महृद्रोगसम्मोहाः श्रम श्वासाद्विधारितात् ॥ १५ ॥
तहां खांसीको नाशनेवाली विधि अच्छी तरह करनी योग्य है, परिश्रमके और श्वासके वेगको धारनेसे ॥ १५ ॥
हितं विभ्रमणं तत्र वातघ्नश्च क्रियाक्रमः ॥
जृम्भायाः क्षववद्रोगाः सर्वश्चानिलजिद्विधिः ॥ १६ ॥
गुल्म हृद्रोग संमोह ये रोग उपजते हैं तहां विश्राम और वातनाशक क्रियाका क्रम हित है। जंभाईके वेगको धारनेसे छिकके वेगावरोधज रोग उपजते हैं तहां सब प्रकार से वातनाशक विधिका करना हित है ॥ १६ ॥
पीन साक्षिशिरोह दुग्मन्यास्तम्भारुचिभ्रमाः ॥
सगुल्मा बाष्पतस्तत्र स्वप्नो मद्यं प्रियाः कथाः ॥ १७ ॥
आंसुओंके वेगको धारनेसे पीनस नेत्ररोग शिरमें पीडा हृत्पीडा मन्यास्तंभ अरुचि भ्रम गुल्म ये रोग उपजते हैं तहां शयन मदिरा प्रियकथा ये हित हैं ॥ १७ ॥
विसर्पकोठ कुष्ठाक्षिकण्डूपाण्ड्डामयज्वराः ॥ सकासश्वासहृल्लासव्यंग श्वयथवो वमेः ॥ १८ ॥
छार्दके रोकनेसे विसर्प कोठरोग कुष्ठ नेत्रकंडू पांडु ज्वर खाँसी श्वास हुलास व्यंग सोजा ये उपजते हैं ॥ १८ ॥
गण्डूषधूमानाहारान् रूक्षं भुक्त्वा तदुद्रमः ॥ व्यायामः स्रुतिरस्रस्य शस्तं चात्र विरेचनम् ॥
१९॥
तां कुले धूमलंघन ये हित हैं और रूक्ष पदार्थका भोजन करके वमन करनाभी हित है और कसरत रक्तका निकासना विरेचन येभी हित हैं ॥ १९ ॥
सक्षारलवणं तैलमभ्यंगार्थं च शस्यते ॥ शुक्रात्तत्स्रवणं गुह्यवेदनाश्वयथुर्ज्वरः ॥ २० ॥
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