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(९४६)
अष्टाङ्गहृदयेहारी तुंडिकी इन्होंके फलोंसे ॥ १९॥ और नागरमोथा काकडीके बीज गडूंभाकी जड कडुईतोरई सोनापाठा मीठातेलिया ये सब दोदो तोले लेकर ॥ २० ॥ संभालुके रससहित करंजुवाके तेलको पकावे इस तेलका पीना अभ्यंग और नस्य करनेसे वहुतदिनकी और वहनेवाली गंडमालाभी नष्ट . होतीहै ॥ २१ ॥ और असाध्य गंडमालाभी नष्ट होतीहै ।
तैलं लाङ्गलिकीकन्दकल्कपादे चतुर्गुणे ॥ २२ ॥ निर्गुण्डीस्वरसे पक्कं नस्याद्यैरपचीप्रणुत् ॥ और चौगुने लांगलीके कल्कमें तेलको पका ॥ २२ ॥ संभालुके रसमें पकावे पश्चात् इसकी नस्य लेवे तो अपची नष्ट होय ॥
भद्रश्रीदारुमरिचद्विहारद्रात्रिवृद्घनैः ॥२३॥ मनःशिलालनलदविशालाकरवीरकैः॥ गोमूत्रपिष्टैः पलिकैर्विषस्याईपलेन च ॥ २४॥ ब्राह्मीरसार्कजक्षीरगोशकृद्रससंयुतम् ॥ प्रस्थं सर्षपतैलस्य सिद्धमाशु व्यपोहति ॥ २५॥
पानायैः शीलितं कुष्ठं दुष्टनाडीव्रणापचीः॥ और भद्रदार देवदारु स्याह मिरच हलदी दारुहलदी निशोत नागरमोथा ॥ २३ ॥ और मनसिल हरताल बालछड गईभाकी जड एकप्रकारकी ककडी कनेर ये सब चार चार तोले मीठा तेलिया २ तोले इन्होंको गोमूत्रसे पीस देवे ॥ २४ ॥ और ब्राह्मीका रस आकका रस गौका गोबर इन्होंका रस निकाले पश्चात् सिरसोंका तेल ६४ तोलेको सिद्धकर देवे तो अपची रोग नष्टहोय ॥ ॥२५ ।। और पानादिकोंसे शीलितकिया यह तेल कुट दुष्ट नाडी व्रण अपची रोगोंको जीतताहै।।
वचाहरीतकीलाक्षाकटुरोहिणिचन्दनैः ॥ २६ ॥
तैलं प्रसाधितं पीतं समूलामपची जयेत् ।। वच हरडै लाख कुटकी चंदन।।२६॥इन्होंसे तेलको सिद्धकर पीवै,जड सहित अपची नष्टहोय।।
शरपुंखोद्भवं मूलं पिष्टं तण्डुलवारिणा ॥ २७॥
नस्याल्लेपाच दुष्टारुरपचीविषजन्तुजित् ॥ और शरपुंखाकी जडको चावलोंके जलसे पीस ॥ २७ ॥ नस्य ले अथवा लेप करे तो दुष्ट-. नण अपची विष कृमिरोग नष्टहोय ॥
मूलैरुत्तमकारुण्याः पीलुपाः सहाचरात्॥२८॥ सरोधाभययष्टयाह्वशताहाद्वीपिदारुभिः।। तैलं क्षीरसमं सिद्धं नस्येऽभ्यङ्गे च पूजितम् ॥ २९ ॥
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