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(९४२)
अष्टाङ्गहृदयेण्डुराः ॥२४॥ नश्यन्त्यन्ये भवन्त्यन्ये दीर्घकालानुबन्धिनः ॥ गण्डमालापची चेयं दूर्वेव क्षयवृद्धिभाक् ॥२५॥
और मेदमें स्थित दोष और कंठ मन्या नेत्र काखमें स्थित दोष सवर्ण और कठिन स्निग्ध बैंगन आपलेकी आकृतिके ॥ २३ ॥ कररे और बहुतकालमें पकनेवाले और बहुत फोडे होजातेहैं और कितनेक थोडे रोगवाले पकतेहैं और कितनेक खाजबाले झिरतेहैं ॥ २४ ॥ और बहुत कालतक कितनेक अच्छे होतेहैं और कितनेक फिर पैदा होतेहैं यह गंडमाला अपची नामसे विख्यातहै सो दुबकी तरह उपजतीहै और नष्ट होतीहै ॥ २५ ॥
तां त्यजेत्सज्वरच्छर्दिपार्श्वकासपीनसाम् ॥ अभेदात्पक्कशोफस्य व्रणे चापथ्यसेविनः ॥ २६ ॥ अनुप्रविश्यमांसादीन्दूरं पूयोऽभिधावति ॥ गतिः सा दूरगमन्नाडी नाडीव संस्त्रुतेः॥ ॥२७॥ नाड्येकानृजुरन्येषां सैवानेकगतिर्गतिः॥ सो अपची ज्वर छर्दि पसवाडौंकी पीडा खांसी पीनस इन रोगोंवालेके होवे अथवा सोजावाला और अपथ्यसेवीके होवे तिस अपचीको वर्जदेवे ॥ २६ ॥ सो दूरमांसादिकोंको प्राप्त होकर राध होजातीहै सो दूर प्राप्तहोनेसे नाडी नाडीकी समान झिरतीहै ॥ २७ ॥ सो एकही नाडी कठोर होकर अनेक गतिवाली होजातीहै ।।
सा दोषैः पृथगेकस्थैः शल्यहेतुश्च पञ्चमी ॥२८॥ और न्यारे २ दोषोंसे और एक दोषसे चार प्रकारकी है और पांचवी शल्यके हेतुकी है॥२८॥
वातात्सरुक्सूक्ष्ममुखी विवर्णा फेनिलोद्गमा ॥
स्त्रवत्यभ्यधिकं रात्रौयह नाडी वातसे तो पीडावाली सूक्ष्म मुखवाली विवर्ण झागोंवाली रातको अधिक झिरनेवाली होजातीहै ॥
पित्तात्तृड्ज्वरदाहकृत्॥२९॥ पीतोष्णपूतिपूयास्त्रर्दिवा चातिनिषिञ्चति ॥ ___ और पित्तसे तृषा वर दाह होजाताहै ।। २९ ।। और पित्तसे पीला और गरम बांसवाली दिनमें झिरनेवाली होजातीहै ॥
घनपिच्छिलसंस्त्रावा कण्डूला कठिना कफात् ॥ ३० ॥ निशि चाभ्यधिकक्केदात्
और बहुत झिरतीहै और कफसे करडी और चिकनी और झिानेवाली और खाजवाली . कठिन होजातीहै ॥ ३० ॥ और संपूर्ण दोषोंसे अधिक क्लेश होताहे ।।
सर्वैः सर्वाकृतिं त्यजेत् ॥
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