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(९३८)
भष्टाङ्गहृदये
वायविडंगका सार हरड बहेडा आँवला पीपल इन्होंको शहत और तेलसे चाटे तो कृमि कुष्ठ भगंदर प्रमेह घाव नाडीव्रणका घाव ये सब नष्ट होजातेहैं ॥ ३७॥
अमृतात्रुटिवेल्लवत्सकं कलिपथ्यामलकानि गुग्गुलुः॥ क्रमवृद्धमिदं मधुप्लुतं पिटिकास्थौल्यभगन्दराञ्जयेत् ॥ ३८॥ मागधिकाग्निकलिङ्गविडङ्गैबिल्वघृतैः सवरापलषट्कैः ।। गुग्गुलुना सदृशेन समेतैः क्षौद्रयुतैः सकलामयनाशः ॥ ३९ ॥
और गिलोय इलायची बेलगिरी इंद्रयव बहेडा हरडै आंवला गूगल ये सब क्रमसे दुगुने २ लेकर शहद मिला चाटे तो फुनसी सोजा भगंदर रोगोंको नष्ट करताहै ॥ ३८ ॥ और पीपल चीता इंद्रयव वायविडंग बेलगिरी घत त्रिफला ये सब २४ तोले लेकर बराबरका गूगल और शहद मिला चाटे तो संपूर्ण रोगोंको नष्ट करताहै ॥ ३९ ॥
गुग्गुलुपञ्चपलं पलिकोंशा मागधिका त्रिफला च पृथक्स्यात् ।।
त्वक्त्रुटिकर्षयुतं मधुलीढं कुष्ठभगन्दरगुल्मगतिघ्नम् ॥ ४०॥ __ और गूगल २० तोले हरडै ४ तोले बहेडा ४ तोले आँवला ४ तोले दालचीनी ६ तोले इलायची १ तोला इन्होंको शहद मिला चाटै तो कुष्ठ भगंदर गुल्म इन रोगोंको नष्ट करताहै ॥४०॥
शृङ्गवेररजोयुक्तं तदेव च सुभावितम् ॥
काथेन दशमूलस्य विशेषाद्वातरोगजित् ॥४१॥ सोंठके चूर्णको दशमूलके काथसे भावितकरके देवै तो वातरोगका नाशकरे ॥ ४ १ ॥ उत्तमाखदिरसार रजः शीलयन्नसनवारिभावितम् ॥ हन्ति तुल्यमहिषाख्यमाक्षिकं कुष्ठमेहपिटिकाभगन्दरान्॥४२॥
और त्रिफला खैरसारका चूर्ण इनको आसनाके रसमें भावितकर समभागगूगल और शहत मिला चाटे तो कुष्ठ प्रमेह फुनसी भगंदर रोगोंको नष्ट करताहै ॥ ४२॥
भगन्दरेष्वेष विशेष उक्तः शेषाणि तु व्यञ्जनसाधनानि ॥ व्रणाधिकारात्परिशीलनाच्च सम्यग्विदित्वौषधिकं विदध्यात्॥४३॥ भगंदरोंमें तो ये विशेषकरके कहेहैं और अन्य रोगोंमें भी हितकारी हैं और व्रण अधिकार और परिशीलनको अच्छी तरह देखके औषधि देवे ।। ४३ ॥
अश्वपृष्ठगमनं चलरोधं मद्यमैथुनमजीर्णमसात्म्यम् ॥
साहसानि विविधानि च रूढे वत्सरं परिहरेदधिकं वा ॥४४॥ ___और घोडेकी सवारी अधोवायुका रोध मदिरा मैथुन अजीर्ण प्रकृतिसे दूसरा भोजन अनेक प्रकारके हठ इन सबोंको भगंदर अच्छे हुये पश्चात्भी एक वर्ष अथवा अधिकतक वर्जदेवे ॥ ४४ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडिलरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकाया
मुत्तरस्थाने अष्टाविंशोऽध्यायः ॥ २८ ॥
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