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________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendre www.kobatirtm.org Acharya Sh Kailassagar Gyanmandi इतने वचन सुनते ही देव ने उस नगरी को यसादी, जिसमें स्वर्णस्तंभ, रत्नजटित भवन बगषे, चारों ओर उच्च प्र प्राकार बनाया। मध्य में एक रमणीय, अद्भुत स्वर्णमय, उज्वल, प्रासाद (राजमहल) बनाया । उसमें हाली राजा विष्णुश्री के साथ रहने लगा- सब ऋतुओं के अनेक प्रकार के भोग विलास इंद्र-इंद्राणी के समान भोगता था। अपनी राजधानी विमानवत् विराजमान थी। (यह सब श्री वीतराग भगवान् के नैवेद्य पूजा का फल है-इसके उत्कृष्ट पुण्य का उदय हुआ है।) इस प्रकार अपनी स्त्री के साथ उसको सुन्दर राज्य सुख, श्री बीतराग भगवान की नैवेद्य पूजा के प्रताप से मिला, यह जान उस हाली राजा ने यहां श्री जिनराज की भक्ति प्रारंभ की और प्रतिदिन अनुराग से विविध प्रकार से नवेद्य पूजा करने लगा। इस प्रकार धर्म ध्यान करते २ और अखंड राज्य सुख भोगते २ समय व्यतीत होता है। इस अवसर में वह अधिष्ठायक देव अपनी आयु पूर करके देवलोक से च्युत होकर विष्णुश्री के गर्भ मं पुत्र उत्पन्न हुआ। राजा ने अपने परिवार के साथ उत्सव कर उस कुवर का नाम कुसुम कुमार दिया- वह MPEAMPARAN For Private And Personal Use Only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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